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________________ अणुव्रत : हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील और मूर्छा-परिग्रह इन पाँच दोषों से स्थूल रूप या एक देश रूप से विरत होना अणुव्रत है। अणु शब्द का अर्थ लघु या छोटा है। जो स्थूल रूप से पंच पापों का त्याग करता है, वही अणुव्रत का धारी माना गया है। अणुव्रत पांच हैं- अहिंसा, अमृषा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह । गुणव्रत और शिक्षाव्रत : श्रावक धर्म में गुणव्रत और शिक्षाव्रत अहिंसा की साधना को और गहन करने के लिए है। गुणव्रत तीन हैं1. अपनी इच्छाओं को सीमित करने के लिए सभी दिशाओं का परिमाण करना दिग्वत है। 2. वस्तुओं के प्रति आसक्ति भाव कम करने के लिए उसकी सीमा निर्धारण करना भोगोपभोग परिमाण व्रत है। 3. निरर्थक कार्यों को नहीं करना अनर्थदण्ड व्रत है। उदाहरणार्थ दूसरे के सम्बन्ध में बुरा नहीं सोचना, हिंसक कार्यों का उपदेश नहीं देना, आवश्यक वस्तुओं का दुरुपयोग नहीं करना आदि। शिक्षाव्रत चार हैं - 1. सभी पदार्थों में समभाव रखते हुए अपने स्वरूप में लीन होना सामायिक है। 2. सामायिक की स्थिरता के लिये उपवास पूर्वक धार्मिक कार्यों में समय व्यतीत करना पौषधोपवास है। 3. कषायों को कम करने के लिए प्रतिदिन दिशाओं की तथा भोगोपभोग की वस्तुओं की मर्यादा करना देशव्रत है। 4. आत्म साधना में रत अतिथियों के लिए आहार, औषध आदि देना अतिथि संविभाग व्रत है। इसे वैयाव्रत भी कहा गया है जिसमें मुनियों की सेवा शुश्रूषा का विधान है। व्रतों का विस्तार : श्रावक के उक्त व्रतों में इन पाँच अणुव्रतों का वर्णन जैन ग्रन्थों में विस्तार से मिलता है। अहिंसा, अमृषा, अस्तेय, अमैथुन एवं अपरिग्रह। हिंसा न करना, झूठ न बोलना, तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2005 - - 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524624
Book TitleTulsi Prajna 2005 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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