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3. तमस्काय और कृष्णराजि दोनों में चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र एवं तारा-रूप
का पूर्ण अभाव है, किन्तु जहाँ तमस्काय के परिपार्श्व में चन्द्रमा आदि पांचों होते हैं तथा पार्श्ववर्ती चन्द्र, सूर्य की प्रभा तमस्काय में आकर धुंधली बन जाती है, वहाँ कृष्णराजि में चन्द्रमा, सूर्य की आभा का सर्वथा अभाव है। दोनों में बड़े मेघ संस्विन्न होते हैं, समूर्च्छित होते हैं और बरसते हैं तथा वह (संस्वेदन, समूर्छन, वर्षण) देव, नाग और असुर भी करते हैं, पर तमस्काय में जहाँ स्थूल गर्जन और विद्युत् और नाग तीनों करते हैं, वहां कृष्णराजि में
केवल कोई देव करता है, असुर और नाग नहीं करते। faşina i go out fach (Black Hole)
__ आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुसार प्रकाश के अणुओं (जिन्हें फोटोन कहा जाता है) पर भी गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव होता है, अत: प्रकाश की गति भी इससे प्रभावित होती है। सामान्य स्थिति में ताराओं से प्रकाश निकलता रहता है और चारों ओर फैलता है किन्तु कुछ तारे ऐसे होते हैं जिनमें द्रव्यमान या संहति (Mass) अत्यन्त अधिक मात्रा में तथा सघन रूप में होती है। उनका प्रकाश उनके गुरुत्वाकर्षण के कारण उनसे बाहर निकल कर फैल नहीं सकता। उनकी सतह से जो भी प्रकाश बाहर फैलने की कोशिश करता है, तो उसे भी थोड़ी दूर पहुंचने पर ही तारे के भीतर का गुरुत्वाकर्षण पुनः खींच लेता है। इसकी वजह से वह तारा 'कृष्ण' वर्ण वाला दिखाई देता है। विज्ञान ने ऐसे तारे को 'कृष्ण विवर' (ब्लेक होल) की संज्ञा दी है। जब प्रकाश जैसे अति सूक्ष्म अणुओं को भी कृष्ण छिद्र अपने चंगुल से निकलने नहीं देता, तब यह स्पष्ट है कि यदि कोई भी अन्य भौतिक पदार्थ या आकाशीय पिण्ड उसके निकट आएगा तो वह अपनी ओर उसे खींच लेगा और अपने में आत्मसात कर लेगा। कृष्ण विवर की उत्पत्ति
वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार जब किसी भी तारे के भीतर ईंधन समाप्त हो जाता है, तब उस तारे का तापमान क्रमशः घटता जाता है और उसके परिमाण का संकुचन के साथ-साथ तारे का घनत्व बढ़ता जाता है। बढ़ते-बढ़ते वह इतना अधिक हो जाता है कि उसकी सतह से किसी भी पदार्थ का मुक्त होना कठिन हो जाता है। अन्ततोगत्वा उसका घनत्व इतना अधिक हो जाता है कि प्रकाश के अणु जैसा सूक्ष्म पदार्थ भी फिर उससे बाहर भाग नहीं सकता। जो भी पदार्थ उसके गुरुत्व-क्षेत्र की सीमा में आ जाता है, उसे भी वह अपनी ओर खींच लेता है।
कृष्ण विवर सही अर्थ में पूर्णरूपेण कृष्ण होने से किसी भी साधन के द्वारा दिखाई नहीं दे सकता। फिर भी गुरुत्वाकर्षण बल का अनुभव किया जा सकता है। आकाश में विद्यमान
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तुलसी प्रज्ञा अंक 128
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