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________________ तारे आदि प्रकाशित पिण्डों से घिरा हुआ यह पिण्ड एक प्रकार का गड्डा (विवर) है, जिसमें गिरने वाला पदार्थ वापिस बाहर नहीं निकल सकता। इस रूप में 'कृष्ण विवर' की संज्ञा बिल्कुल सार्थक है। वैज्ञानिक धारणा के अनुसार ऐसे कृष्ण विवरों की संख्या अनेक हैं । संभवतः इनमें से एक कृष्ण विवर का अस्तित्व हमारी आकाश-गंगा (गेलेक्सी) के भीतर है, जिसे 'सिग्नसएक्स1' की संज्ञा दी गई है। कृष्ण विवर के साथ तुलना उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि लोक में नए कृष्ण विवर की उत्पत्ति होती रहती है पर तमस्काय, कृष्णराजि के वर्णन से लगता है कि ये एक रूप में शाश्वत पदार्थ हैं, इनकी नई उत्पत्ति नहीं होती। तात्पर्य यह हुआ कि यद्यपि कृष्णराजि और कृष्ण विवर में समानताएं हैं, फिर भी दोनों एक नहीं हैं। उपर्युक्त वर्णन ये यह भी स्पष्ट होता है कि जहाँ तमस्काय और कृष्णराजि- ये दोनों ही रोमाञ्च उत्पन्न करने वाली, भयंकर, उत्त्रासक और क्षुब्ध करने वाली हैं जिससे कि देव आदि आकाशगामी जीव उनसे दूर रहने की कोशिश करते हैं, वहां कृष्ण विवर के विषय में वैज्ञानिकों की भी यही धारणा है कि कोई भी आकाशीय पिण्ड या प्रकाश-पिण्ड उसके पास से गुजर नहीं सकता। यदि गुजरता है तो उस गड्ढे में गिर जाता है, उसमें विलीन हो जाता है। कृष्णराजि का आकार त्रिकोण, चतुष्कोण अथवा षट्कोण हैं। वहां तमस्काय का आकार प्रारम्भ में एक प्रदेश-श्रेणी-रूप रेखात्मक है और ऊपर उठ कर वह मुर्गे के पिंजरे की भांति आकार वाला अर्थात् चतुरस्त्रात्मक हो जाता है। वृत्ति के अनुसार प्रदत्त स्थापना से यह अनुमान लगाया जा सकता है। वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार स्थिर होने के पश्चात् कृष्ण विवर का आकार पूर्ण वृत्त होता है। इस विवरण के अतिरिक्त विज्ञान जगत में माना गया है कि यह संभावित है कि जो पदार्थ ब्लैक होल में चला जाता है, वह इस ब्रह्माण्ड में कहीं बाहर निकलता है। ये ब्लैक होल कितने व्यास और लम्बाई के हैं, आकाश में इनका छोर कहाँ है, यह ज्ञात नहीं हैं किन्तु जहाँ भी पदार्थ ब्लेक होल से बाहर निकलता है वह व्हाइट होल होगा। इस प्रकार जिस छोर से पदार्थ आकर्षित होगा वह उसके लिए ब्लेक होल का काम करेगा। इस प्रकार एक ब्रह्माण्ड में पदार्थ का आवागमन संभव है। भौतिक शास्त्री हांकिग तथा पेनरोज ने साठ के दशक में यह माना था कि ब्लेक होल किसी दूसरे अंतरिक्ष का द्वार हो सकता है। दो ब्रह्माण्डों को मिलाने वाली गुफा को वार्म होल कहा है। अगर ब्लेक होल घूमने लगे तो यह स्थान एक तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-जून, 2005 - - 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524623
Book TitleTulsi Prajna 2005 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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