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________________ 21. उत्तराध्ययन 32-16 22. समवायांग 415, प्रज्ञापना पद 8 23. अभिधान राजेन्द्र कोष, खण्ड 7, पृष्ठ 301 24. स्था. 2/4/105, कर्मग्रन्थ भा. 1, गा. 13 25. जैन सिद्धान्त दीपिका 4/22 26. वही 4-24 27. जैन सिद्धान्त दीपिका 4-1 28. उत्तराध्ययन 8/16 29. तत्त्वार्थ सूत्र 7/1 तथा 8/1 30. जैन सिद्धान्त दीपिका 4/18 31. जैन सिद्धान्त दीपिका 5/1 आश्रवनिरोधः संवरः 32. वही 5/16 तपसा कर्म विच्छेदादात्मनैर्मल्यं निर्जरा 33. वही 5/8 34. उत्तराध्ययन 30/7-8 तथा 30 35. आचारांग 1/8/8/11- ग्रंथेहिं विवेत्तेंहि आउकाल सपारए 36. उत्तराध्ययन 26/5 37. दसवेकालिक 4/8 जयं चरे जयं चिट्ठे, जयं भासे जयं सए। जयं भुजंतो भासंतो, पाव कम्मं न बंधई। 38. आचारांग 7/5/2 39. उत्तराध्ययन 32/100/101 40. जै. सि. दी. 4/28 - 'योगवर्गणान्तर्गतद्रव्यसाचिव्यात् परिणामोऽयमात्मनः'। 41. आचारांग 1/2/3 42. आचारांग 1/3/4 43. आचारांग 1/1/7 प्रवक्ता / सम्पादक जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) लाडनूं - ३४१ ३०६ (राजस्थान) 66 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 128 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524623
Book TitleTulsi Prajna 2005 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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