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________________ सकता है। एक समय जब हम एक चीज का उपभोग कर रहे हैं, उसी समय दूसरे का नहीं कर सकते। हां, यदि हम किसी समय कुछ भी उपभोग न कर रहे हैं तो निश्चित रूप से हम सामग्री को बढ़ा लेते हैं । लेकिन इच्छाओं पर किसी पूर्ण विराम की बात सहज नहीं । प्राकृतिक संसाधनों से सुख पाने की लालसा, उनका अधिकतम संग्रह एवं उपभोग ने प्रकृति को असंतुलित किया है, पर्यावरण से जुड़ी अनेक समस्याएं इसका परिणाम है । आज विवेकशील अर्थशास्त्रियों का ध्यान इस ओर जाने लगा है कि उपभोग के आधार पर उत्पादन को बढ़ा देने की बात वैसी ही है मानों पूंछ कुत्ते को हिला रही है । इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक लेख में शेखर गुप्ता लिखते हैं- “ quit the pretence, the economy is on the wrong track” ढोंग छोड़ो, अर्थ व्यवस्था गलत राह पर है । एक ओर हम लोग भारतीय अर्थ व्यवस्था को विश्व में उच्चतम विकास दर दर्शाने वाली अर्थव्यवस्था में से एक के रूप में देखते हैं। भारत के नए प्रौद्योगिकी उद्यमी सबसे नव प्रवर्तक और सफल लोगों में गिने जाते हैं। साथ ही भारत के प्रबंधक वित्त व व्यवस्था परामर्श की दुनिया में उच्चतम स्थान प्राप्त कर चुके हैं और दूसरी ओर, भारत की सार्वजनिक व सामाजिक सेवाएं विश्व की बदतर सेवाओं में गिनी जाती हैं। भारत की मूलभूत संरचना, चाहे वह सड़क हो या बिजली, समस्याओं से भरपूर है। भारत के अच्छे और बुरे दोनों ओर के सैकड़ों उदाहरण हैं । हम किस दिशा में जा रहे हैं? इस संदर्भ में सफलता और विफलता के कारणों का निष्पक्ष विश्लेषण आज और आने वाले कल की दुनिया में भारत के स्वरूप को उजागर कर सकता है। लेकिन आज व्यक्ति की शक्ति अपने अहंकार और सुख सुविधा की दिशा में लगी है। इसका निश्चित परिणाम प्राकृतिक संसाधनों का अभाव ही आना है। सुख का दूसरा संसाधन मनुष्य स्वयं है । वस्तु और विचार का अनाग्रह, अपरिग्रह इसका फलित है। असीम क्षमता, आनन्द और ऊर्जा को स्रोत व्यक्ति के भीतर निहित हैं । अपनी अपरिमित शक्तियों और संभावनाओं से अनजान रह कर व्यक्ति यदि दुःख का जीवन जीता है तो इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा । Oliver wendell Holmes - The biggest tragedy in America is not the great waste of nataual resences, though this is tragic. The biggest tragedy is the waste of human resewrces. The average goes to grave with his music still in him." तुलसी प्रज्ञा अप्रेल - जून, 2005 Jain Education International For Private & Personal Use Only 49 www.jainelibrary.org
SR No.524623
Book TitleTulsi Prajna 2005 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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