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जैन शास्त्रों में ग्रह परिवार के प्रमुख के रूप में चन्द्र को माना गया है, सूर्य को नहीं। ढाई हजार वर्ष पहले संसार की सत्ता का केन्द्र चन्द्र माना जाता था। संवत्सर भी चन्द्र आधारित ही बनते थे। आधुनिक विज्ञान के अनुसार सूर्य के ग्रह और ग्रहों के चन्द्र होते हैं लेकिन पूर्व में यह माना जाता था कि प्रत्येक चन्द्र का एक परिवार होता है जिसमें कुछ ग्रह, कुछ तारे, कुछ नक्षत्र और एक सूर्य होता है। भरत क्षेत्र क्या है
समस्त जैन शास्त्रों के अनुसार यदि जम्बूद्वीप के 190 समान टुकड़े किये जाएं तो उनमें से एक टुकड़ा भरत क्षेत्र होगा। चूँकि जम्बद्वीप वृतीय चकतीनुमा है, इसलिये ये टुकड़े, उसके क्षेत्रफल के ही हो सकते हैं, व्यास के नहीं। अधिकांश शास्त्रों में लिखा है कि जम्बूद्वीप के व्यास (एक लाख योजन) में 190 का भाग देने पर जो राशि प्राप्त होती है (526.31 योजन) वह भरत क्षेत्र का व्यास है। यह तर्क असंगत प्रतीत होता है, क्योंकि व्यास के 190 टुकड़ें करने से किसी द्विविमीय या त्रिविमीय क्षेत्र के भी 190 समान टुकड़े होंगे, यह व्याख्या गलत है। जब आप किसी चकती के ऐसे टुकड़े करें कि उसका सबसे न्यून टुकड़ा चकती का 190 वां अंश हो, फिर अगला टुकड़ा पहिले से दुगुना हो, तीसरा टुकड़ा दूसरे से दुगुना हो.......... फिर केन्द्र के बाद के टुकड़े क्रमश: आधे-आधे हों, तो निश्चित ही आपको चकती की फांक या स्लाईस (Slice) काटना होगी। ऐसी स्लाइस काटने पर आप वास्तव में क्षेत्रफल के टुकड़े करते हैं ना कि व्यास के।
जैन शास्त्रों के अनुसार भरत क्षेत्र का क्षेत्रफल 21,7370,2229/361 वर्ग योजन (=602,1335.6-लगभग 6 x 10 वर्गयोजन) है। यद्यपि 'तिलोयपण्णति76 में जम्बूद्वीप का क्षेत्रफल 79,05,69,41,50 वर्ग योजन बताया है और इसके 190 टुकड़े करने पर एक टुकड़े (भरत) का क्षेत्रफल 41.3 x 10° वर्ग योजन प्राप्त होता है। इस असमानता का जो भी कारण रहा हो, यदि हम भरत का क्षेत्रफल पूर्व मान के अनुसार 602,1335.6 वर्ग योजन मानें तथा उसे चकतीनुमा मानकर उसका पृष्ठ क्षेत्रफल 4nr2 के सूत्र से निरूपित करें (किसी चकती का अर्थ व्यास हो तो उसका पृष्ठ क्षेत्रफल 4xr होता है।) तो
4 nr = 6021335.6 योजन अतः ..-692.4 योजन, चूंकि 1 योजन=4 कोस =8 मील= 12.8 किलोमीटर है अतःr =692.4 x 12.8 किलोमीटर =8862.7 किलोमीटर
तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-जून, 2005
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