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________________ मध्य विभाग माना जाए तो दो सूर्य का अस्तित्व समझ में आ सकता है। जम्बू रूपी विभाग के दक्षिणी अर्ध भाग से एक तथा उत्तरी अर्धांश से एक, इस प्रकार जम्बू में दो सूर्य दृष्टिगोचर होते हैं। इनमें से एक हमारा सूर्य है जिसके नौ ग्रह तथा उनके कुछ उपग्रह हैं। ग्रहिकाएं (Asteroids), तारिकाएं, नक्षत्र आदि भी हैं। पृथ्वी इसी सूर्य का एक ग्रह है। जैन दर्शन में कुछ ग्रह 88 (कुछ शास्त्रों में 83) बताये गये हैं। इसी प्रकार दूसरे सूर्य का भी एक परिवार है। ऐरावत उसी का एक ग्रह है। दोनों सूर्य 180 योजन जम्बू में तथा (330.. 48) योजन लवण समुद्र में गमन करते है। एक सूर्य की उदय दिशा आग्नेय, तो दूसरे की वायव्य होती है। ये दिशाएं मेरू के सन्दर्भ में कही गई प्रतीत होती है अर्थात् यदि मेरू पर्वत से या जम्बू विभाग के केन्द्र से खड़ा होकर देखा जाए तो एक सूर्य आग्नेय तथा दूसरा वायव्य विदिशा से उदित होता हुआ प्रतीत होता है। दोनों की कक्ष एक-दूसरे को कहीं काटती नहीं है अर्थात् दोनों किसी एक स्थान पर साथ-साथ मिलते हों, ऐसा नहीं होता। एक सूर्य की कक्षा जम्बू के दक्षिणी अर्ध में पूरी हो जाती है तथा दूसरे की उत्तरी अर्ध भाग में । इन दोनों सूर्य के आतप एवं तिमिर क्षेत्र का विस्तार मेरू के मध्य से लवण समुद्र के छठे भाग पर्यन्त अर्थात् 83, 3331 योजन है।12 एक सूर्य के कारण ताप क्षेत्र में जितना आतप रहता है उससे दुगुना आतप दो सूर्यो के कारण होता है। इस प्रकार जम्बू तथा लवण समुद्र के कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहाँ दोनों सूर्य का संयुक्त प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। दोनों सूर्य के मध्य क्षैतिज दूरी का न्यूनतम (उनके प्रथम कला मंडल में होने पर) 99,640 योजन तथा महत्त्तम मान (उनके अन्तिम कला में होने पर) 1,00,660 योजन है। इनके मध्य दूरी का औसत मान 1,00,150 योजन प्राप्त होता है। यदि आकाशीय दूरियों को नापने हेतु हम एक योजन (महायोजन) का मान 4000 मील (-6400 किलोमीटर=6.4 x 106 मीटर) लें तो दोनों सूर्य के मध्य औसत दूरी 6.41 x 1011 मीटर प्राप्त होती है। विज्ञान में कहा गया है कि हमारे सूर्य से जो निकटतम सूर्य है वह “Alpha Centauri" कहलाता है। उसके हमारे सूर्य से दूरी कुछ 1.6 x 1015 मीटर है। इसी प्रकार जम्बू में दो चन्द्र का होना बताया गया है। चन्द्र हमारा उपग्रह है। वैसे तो केवल हमारे ही सूर्य के जितने ग्रह हैं उनके कुल उपग्रहों का योग (विज्ञानानुसार) 56 है लेकिन जैन दर्शन में शायद उपग्रहों को भी ग्रहों के साथ जोड़कर सबके लिये 'भूमि' शब्द प्रयुक्त किया गया है। इसलिये जैन धर्म में कुल ग्रहों (भूमियों) की संख्या 88 (या 83) बताई गई हैं तथा केवल भरत और ऐरावत के उपग्रह को ही चन्द्र मानकर चन्द्रों की कुल संख्या दो बताई गई है। 34 । - तुलसी प्रज्ञा अंक 128 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524623
Book TitleTulsi Prajna 2005 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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