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और यहीं से भ्रान्तियाँ उत्पन्न होती हैं। मेरा कथन है कि जम्बद्वीप, पृथ्वी नहीं है अपितु इस मध्यलोक (गैलक्सी) का सबसे छोटा तथा केन्द्रीय वृत्तीय विभाग है जिसमें दो सूर्य तथा उनका सौर परिवार स्थित है।
इस परिवार में पृथ्वी एक सदस्य मात्र है। इस तर्क के लिये मैं निम्न प्रमाण प्रस्तुत करता हूँ(1) जम्बूद्वीप में भरत, ऐरावत तथा विदेह क्षेत्र (कुछ भाग छोड़कर शेष)को
कर्मभूमि बताया गया है एवं शेष सारे क्षेत्रों को भोगभूमि कहा गया है। भोगभूमि वह होती है जहाँ मनुष्य तथा तिर्यंच कोई कर्म (असि, मसि, कृषि आदि) नहीं करता अपितु कल्पवृक्ष से ही अपना पूर्ण जीवन निर्वाह कर लेता है। यदि जम्बूद्वीप ही पृथ्वी है तो पृथ्वी के कौन से महाद्वीप का कौनसा देश है जहाँ मनुष्य और पशु-पक्षी कर्म नहीं करते हों और केवल
एक कल्पवृक्ष के आधार पर जीवन यापन करते हों? (2) यदि जम्बूद्वीप ही पृथ्वी है तो इस पृथ्वी के कौन से देश के कौन से शहर या
वनप्रान्त में जम्बूवृक्ष स्थित है जिसका वर्णन जैन शास्त्रों में है? (3) यदि जम्बूद्वीप ही पृथ्वी है तो जम्बू को चारों ओर से घेरे हुए लवण समुद्र
क्या है जिसमें चार सूर्य और 352 ग्रह हैं? यदि यह पृथ्वी के महासागरों का सूचक है तो इसका व्यास दो लाख योजन (जम्बू से दुगुना) कैसे हो सकता
है जबकि महासागर तो पृथ्वी के ही हिस्से हैं? (4) पृथ्वी एक गृह है, इसे द्वीप क्यों कहा गया? (5) जम्बूद्वीप में वर्णित वे छः विषधर पर्वत कहाँ हैं जिनके पूर्व-पश्चिम के
सिरे लवण समुद्र को छूते हों? (6) जम्बूद्वीप के सात क्षेत्रों की कुल चौदह प्रमुख नदियों के नाम दो-दो के युग्म
में बताये गये हैं यथा-गंगा-सिंधु, रोहित-रोहितास्य, नारी-नारीकान्ता, स्वर्णकूला-रूपकूला, हरित-हरिकान्ता, सीता-सीतोदा, रक्ता-रक्तोदा । इनमें से गंगा-सिन्धु को भरतक्षेत्र में बहता हुआ माना गया है। यदि वे सब इसी पृथ्वी की नदियाँ हैं तो प्रश्न है कि इनमें से हमने केवल गंगा-सिन्धु युग्म का ही नाम सुना और देखा है, शेष का क्यों नहीं? यदि शेष के नाम परिवर्तित हो गये हो तो गंगा-सिन्धु के नाम क्यों नहीं बदले? जम्बूद्वीप नियत, शाश्वत, अक्षय, नित्य माना गया है। पृथ्वी के लिये ये बाते लागू नहीं हो सकती, क्योंकि पृथ्वी तो सूर्य से जन्मी है।
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तुलसी प्रज्ञा अंक 128
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