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________________ उपरोक्त विवेचना से निम्न सार निकलता है : (a) एन संख्या के द्वीप और समुद्र का समुदाय हमारी गैलक्सी का द्योतक हो सकता है। हमारी गैलक्सी का सीला आकार, द्वीप-समुद्रों के बैंड के आकार से मिलता है। (b) द्वीप समुद्रों का समुदाय, मध्यलोक तथा हमारी गैलक्सी, तीनों की विमाएँ समान हैं। (c) जो भिन्न-भिन्न द्वीप-समुद्र हैं वे वास्तव में हमारी गैलक्सी के विभिन्न विभाग हैं। द्वीप-समुद्र के बारे में इस दृष्टिकोण की पुष्टि हेतु 'तिलोय पण्णति' की यह गाथा देखिये - "लवण समुद्र में 352 तथा घातकीखंड में 1056 ग्रह हैं।" स्पष्ट है कि लवण समुद्र इस मध्य लोक रूपी गैलक्सी का एक ऐसा विभाग है जिसमें 4 सूर्य, उनके 352 ग्रह, 4 चन्द्र तथा 112 नक्षत्र आदि हैं। इसी प्रकार जम्बूद्वीप एक ऐसा विभाग है जिसमें 2 सूर्य, 2 चन्द्र तथा प्रत्येक के 28 नक्षत्र हैं। इसी प्रकार अन्य द्वीप-समुद्र के बारे में जानें। मेरू तथा अन्य पर्वत ____ असंख्यात् संख्या के द्वीप-समुदाय का जो बैंड है उसमें कुल मिलाकर असंख्य तारे हैं। जैन दर्शन में लिखा है कि ये सभी तारे मेरू पर्वत के चारों ओर प्रदक्षिणा देते हैं। विज्ञान के अनुसार हमारी समूची गैलक्सी अपने केन्द्र के परितः परिभम्रण करती है। कोई वस्तु प्रदक्षिणा करे, इस हेतु एक अक्ष की आवश्यकता होती है। इसी अक्ष के परितः वस्तु का परिभ्रमण होता है। यदि असंख्य तारे मेरू के परितः परिभ्रमण करते हैं तो निश्चय ही मेरू पर्वत एक अक्ष के रूप में परिभाषित होना चाहिए। इसलिये मेरा सुझाव है कि(1) मेरू पर्वत एक परिकल्पनीय अक्ष (Hypothetical axis) हैं। जिसके परितः मध्यलोक (गैलक्सी) का सम्पूर्ण पदार्थ परिभ्रमण करता है। (2) मेरू या तो परिकल्पित अक्ष है या फिर सूक्ष्म जगत (Micro, Astral World) की कोई हकीकत, जिसे केवल अतीन्द्रिय ज्ञान अथवा केवल ज्ञान से ही अनुभूत किया जा सकता है। जम्बूद्वीप जम्बूद्वीप समस्त द्वीप-समुद्रों के समुदाय का सबसे छोटा तथा सबसे मध्य का (अभ्यंतर) द्वीप है। इसका विष्कम्भ-आयाम (व्यास) एक लाख योजन है तथा गोलाकार है। लगभग सभी जैन मनीषी जम्बूद्वीप को पृथ्वी का सूचक मानकर सारा वर्णन समझाते हैं तुलसी प्रज्ञा अप्रेल --जून, 2005 - 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524623
Book TitleTulsi Prajna 2005 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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