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आयुर्वेद का सूत्र है- "दोषवैषम्यं रोगः दोषसाम्यं आरोग्यं 128 तीनों दोष सम अवस्थाओं में रहते हैं तब स्वास्थ्य होता है। मानसिक दोषों के लिए उत्कृष्ट औषध-धी, घृति और आत्मा आदि का ज्ञान करना है। मानसिक समता आरोग्य है। जहां समता वहां स्वास्थ्य और जहां स्वास्थ्य वहाँ समता। हमारी जीवन शैली उपशम प्रधान तथा संतुलन प्रधान होने से शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक रोगों से बच सकती है।
जो अभय की साधना करना चाहे, आक्रामक मनोवृत्ति को छोड़ना चाहे, कामवृत्ति पर नियन्त्रण करना चाहे उसके लिए नासाग्र पर ध्यान करना चाहिए।
चिकित्सा अनेक प्रकार की होती है। उसमें एक चिकित्सा पद्धति है-प्रेक्षा-थेरापी। प्रेक्षा-चिकित्सा, जिसमें शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक रूप से व्यक्ति को स्वस्थ बनाया जाता है व असाता वेदनीय कर्म को मंद किया जा सकता है।
प्रेक्षा-चिकित्सा कब्ज• आसन-पेट की दस क्रियाएं, अग्निसार, उदराकर्षण, इष्टवंदन
प्राणायाम-दीर्घश्वास, अनुलोम-विलोम, दाहिने स्वर को खुला रखकर मूलबंध कर
100 कदम चलना। • प्रेक्षा- ठुड्डी के नीचे के भाग को हथेली से दबाएं और उस पर ध्यान करें।
अनुप्रेक्षा- बड़ी आंत को सुझाव दें - मेरी आंत सक्रिय हो रही है। मंत्र-हुं का जप करें। तप- भोजन के बाद साढ़े तीन घंटे तक कुछ नहीं खाना । गरिष्ठ, मैदा, मावा, तले हुए
पदार्थ और चाय का वर्जन। • मुद्रा-सूर्य मुद्रा, शंख मुद्रा, नमस्कार मुद्रा।
विशेष प्रयोग- अर्धशंख प्रक्षालन, ताड़ासन, स्कन्धासन, तिर्यग् भुजंगासन, शंखासन। तनाव मुक्ति - शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तनाव शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को नष्ट करते है। इससे मुक्त रहना। आसन-ताड़ासन, नौकासन, सुप्तकायोत्सर्ग 20 मिनिट। परिवर्तन मुद्रा, कण्ठ का कायोत्सर्ग। प्राणायाम- दीर्घश्वास, केवल रेचन, सूक्ष्म भस्त्रिका, महाप्राण ध्वनि
प्रेक्षा- समवृत्ति श्वास प्रेक्षा, सम्पूर्ण शरीर पर श्वेत रंग का ध्यान • अनुप्रेक्षा- मैत्री और सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा। • मंत्र-ऊं ह्रीं श्रीं भगवते पार्श्वनाथाय हर हर स्वाहा। • मुद्रा- ज्ञान मुद्रा, सुरभि मुद्रा, सूर्य मुद्रा, सर्वेन्द्रिय संयम मुद्रा।
तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-जून, 2005
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