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कर्म सिद्धान्त और आरोग्य-विज्ञान
- समणी मल्लिप्रज्ञा
आरोग्य सुख शान्ति की राह है।अ उसे समग्रता से समझने के लिए जैनों के कर्म सिद्धान्त और आरोग्यविज्ञान के संबंध को जानना आवश्यक है।
जैन दर्शन का सिद्धान्त अध्यात्म की भूमिका पर आरूढ़ होकर अनेक समस्याओं का समाधान देता है। आरोग्य विज्ञान आयुर्वेद का दूसरा नाम है। व अथर्ववेद के मंत्र देवों के लिए भेषजप्रतिपादन है, जिनसे आरोग्य प्राप्ति होती है। इसलिए अथर्ववेद को आयुर्वेद का उद्गम स्थल माना जाता है। आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र के रूप में प्रतिष्ठित है।
कर्म सिद्धान्त को सम्यग् रूप से समझकर व्यक्ति पूर्वबद्ध कर्मों का नाश करने के लिए तथा नवीन कर्मों के आगमन को रोकने के लिए प्रयत्नशील हो जाता है। आयुर्वेद शास्त्र के भी दो उद्देश्य बतलाए गए हैं- रोग से पीड़ित व्यक्तियों को रोग से मुक्त करना और दूसरा स्वस्थ पुरुषों की रक्षा करना।
___ आयुर्वेद के कुछ आचार्यों ने कर्म के स्तर पर भी विश्लेषण किया है। उन्होंने माना है-रोगों के जनक पुण्य-पाप भी हैं । जैन दर्शन सम्मत चौदह पूर्व ग्रन्थों में कर्मप्रवाह नामक पूर्व है। उनमें कर्म और उसके परिणामों का विस्तार से वर्णन प्राप्त है। आज वह महाग्रन्थ प्राप्त नहीं है किन्तु कर्म विषयक जो सूत्र उपलब्ध हैं उनका गम्भीर अध्ययन करने पर रोग, आरोग्य और कर्म का सम्बन्ध सूत्र बुद्धिगम्य हो जाता है। उसके अध्ययन से नए-नए आयाम उद्घाटित होते हैं।
___ आज अपेक्षा है रोग और आरोग्य दोनों घटकों के सही ज्ञान के लिए कर्मसिद्धान्त और आरोग्य विज्ञान का संयुक्त अध्ययन हो। आचार्य श्री महाप्रज्ञ के अनुसार कर्म-सिद्धान्त की गूढ़ पहेलियों को सुलझाने तथा उसकी व्यापक उपयोगिता को सिद्ध करने के लिए आधुनिक आरोग्य विज्ञान के शोधकार्यों को भी जानना जरूरी है। दूसरी ओर आरोग्य विज्ञान के सामने कुछ चुनौतियां, कुछ अहेतुक
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तुलसी प्रज्ञा अंक 128
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