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________________ we are paying a heavy price to keep it floating और सोचा कि जब एक बुलबुले को तैरते रखने की इतनी बड़ी कीमत हम चुका रहे हैं तो उसका कुछ उद्देश्य भी तो होना चाहिए। इस चिन्तन के साथ उन्होंने सृष्टि के क्षणभंगुर स्वरूप को और भी तीव्रता से परखा। फिर अपने जीवन के लक्ष्य को कुछ इस तरह निर्धारित किया I expect to pass through this world but once. Any good thing, therefore, that I can do, or any kindness that I can show to any fellow creature, let me to it now ........ for I shall not pass this way again. विलय का अन्तिम क्षण एक दर्शन का उपसंहार है और दूसरे दर्शन का उद्घाटन। इस दर्शन की अनुभूति अन्तिम क्षण में नहीं, एस. ग्रेलेट की तरह उसकी प्रतीति जो अपने जीवन के मध्याह्न में ही कर लेते हैं, वे अपने उन्मन मन को जीवन के शाश्वत मूल्यों के साथ आत्मसात् होने के लिए उन्मुख करते हैं और इस प्रक्रिया से दूसरों के लिए एक नया दीप जलाते हैं। ग्रेलेट ने जो दीप जलाया, आप ध्यान दें, उसका प्रकाश तो सौ दीयों की रोशनी के बराबर है, मगर हम इतना-सा समझ सकें कि जीवन काल में अनादि और अनन्त दो छोरों के बीच, क्षण भर के लिए चमकने वाली विद्युत् रेखा है-Just a brief crack of light between two eternities of darkness. अल्बर्ट आइंस्टीन भी प्रकाश फैलाने वाले ऐसे ही व्यक्तियों में थे। ...... How little do we know that which we are, how less what we may be -- स्वयं को न पहचानने वाली यह बात आइंस्टीन के साथ नहीं थी। वे मनुष्य-जीवन का अर्थ जानते थे। अपने विचारों और कार्यों से उन्होंने उसे नए अर्थ दिए, नई ऊँचाइयाँ दी। जिस सूत्र के आलम्बन से वे शिखर पर पहुँचे, उसे हम भी अपने चिन्तन के शिखर पर रखें। मनन योग्य उनके इन उद्गारों को केवल पढ़े नहीं, अपने मन में उन्हें ऊँचा आसन दें A hundred times everyday I remind myself that my inner and outer life depended on the labours of other men, living and dead, and that I must exixt myself in order to give in the same measure as I have received and still receiving. __ क्या अर्थ हैं इसके? एक तो, जिसे समझ पाना कठिन नहीं, यह है ही कि हम अपने उन्मन मन को विदा करें, उससे स्वयं को विलग करें। इसके साथ ही उसका यह अर्थ भी हम समझ रहे हैं कि जीवन केवल गति है और उसकी पूर्णता अनवरत रूप से चलते रहना हैIn exerting oneself for others too! दूसरे ही क्षण हमें भान होगा कि मनुष्य का जीवन केवल दायित्वों का निर्वहन है जहाँ केवल कर्तव्य ही कर्तव्य है, अधिकार कुछ नहीं। 10 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 128 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524623
Book TitleTulsi Prajna 2005 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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