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इस प्रकार महावीर के जन्मस्थल को लेकर श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओं में एकमत भी नहीं हैं। दुर्भाग्य यह है कि इस संबंध में ऐतिहासिक और सम्प्रदाय निरपेक्ष दृष्टि से विचार करने के लिए कोई प्रयत्न ही नहीं किया गया। यद्यपि इस संबंध में विद्वद् वर्ग एवं इतिहासविदों ने कुछ लेख आदि लिखे भी हैं, किन्तु पारम्परिक आग्रहों के चलते उनकी आवाज सुनी नहीं गई।
श्वेताम्बर और दिगम्बर पक्षों की ओर से भी महावीर के जन्म स्थल को लेकर कुछ लेख एवं पुस्तिकाओं का प्रकाशन भी हुआ है और उनमें अपने-अपने पक्षों के समर्थन में कुछ प्रमाण भी प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, किन्तु सामान्यतया जो प्रमाण प्रस्तुत किये गये हैं वे सभी परवर्तीकालीन ही हैं। प्राचीनतम साहित्यिक एवं पुरातात्विक प्रमाणों को जानने का ही प्रयत्न नहीं किया गया या अपने पक्ष के विरोध में लगने के कारण उनकी उपेक्षा कर दी गई। भगवान महावीर के संबंध में जो प्राचीनतम प्रमाण उपलब्ध हैं, उनमें आचारांग प्रथम श्रुतस्कन्ध लगभग (ई.पू. 5वीं शताब्दी), आचारांग द्वितीय श्रुतस्कन्ध लगभग (ई.पू. प्रथम-द्वितीय शताब्दी), सूत्रकृतांग (ई.पू. दूसरी-तीसरी शताब्दी), कल्पसूत्र (ई.पू. लगभग दूसरी शताब्दी) हैं। कल्पसूत्र में महावीर के विशेषणों की चर्चा उपलब्ध हैं। उसमें उन्हें ज्ञातृ, ज्ञातृपुत्र, ज्ञातृकुलचंद, विदेह, विदेहदिन्ने अर्थात् विदेहदिना के पुत्र, विदेहजात्य, विदेहसुकुमार आदि विशेषणों से संबोधित किया गया है। ज्ञातव्य है कि ये ही सब विशेषण आचारांग द्वितीय श्रुतस्कन्ध के पन्द्रहवें अध्याय में भी उपलब्ध है (आचारांगसूत्र द्वितीय श्रुतस्कन्ध-मुनि आत्मारामजीलुधियाना पृ. 1373)। इन विशेषणों में भी विदेहजात्य विशेषण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यदि एक बार वैदेही या वैदेही के पुत्र मानकर यह मान लिया जाये कि ये विशेषण उन्हें उनके मातृपक्ष के कारण दिये गये, किन्तु जो विदेहजात्य विशेषण हैं वह तो स्पष्ट रूप से इस तथ्य को स्थापित करता है कि महावीर का जन्म विदेह क्षेत्र में ही हुआ था, जबकि वर्तमान में मान्य नालंदा के समीप वाला कुण्डलपुर तथा लछवाड़ दोनों ही मगध क्षेत्र में आते हैं। वे किसी भी स्थिति में विदेह के अन्तर्गत नहीं माने जा सकते। अतः महावीर का जन्म स्थान यदि किसी क्षेत्र में खोजा जा सकता है तो वह विदेह का ही भाग होगा, मगध का नहीं हो सकता।
इसी प्रसंग में कल्पसूत्र में यह भी कहा गया है कि 'तीस वासाइ विदेहंसि कटु' अर्थात् 30 वर्ष विदेह क्षेत्र में व्यतीत करने के पश्चात् माता-पिता के स्वर्गगमन के बाद गुरु एवं वरिष्ठजनों की अनुज्ञा प्राप्त करके उन्होंने प्रव्रज्या ग्रहण की। ___महावीर का विदेहजात्य होना और फिर गृहस्थावस्था के 30 वर्ष विदेह क्षेत्र में
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तुलसी प्रज्ञा अंक 127
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