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तत्त्वार्थसूत्र का पूरक ग्रन्थ
जैन सिद्धान्त दीपिका
- डॉ. धर्मचन्द जैन
जैन धर्म-दर्शन को संस्कृत-सूत्रों में प्रस्तुत करने का प्रथम श्रेय वाचक उमास्वाति को जाता है, जिन्होंने ईसा की द्वितीय-तृतीय सदी में दश अध्यायों में तत्त्वार्थसूत्र की रचना की। कतिपय सूत्रों पर मतभेद को छोड़कर यह तत्त्वार्थसूत्र जैनधर्म की समस्त सम्प्रदायों में समान रूप से आदृत है। इसका स्पष्ट निदर्शन है कि पूज्यपाद देवनन्दी, अकलङ्क, विद्यानन्द, श्रुतसागर आदि दिगम्बर, आचार्यों के द्वारा तथा सिद्धसेनगणि, हरिभद्रसूरि, यशोविजय आदि श्वेताम्बर आचार्यों के द्वारा तत्त्वार्थसूत्र पर टीकाएँ लिखी गईं। बीसवीं सदी में तेरापंथ संघ के आचार्य श्री तुलसीजी ने तत्त्वार्थसूत्र की शैली में जैन सिद्धान्त को संस्कृत-सूत्रों में निबद्ध करने का सफल प्रयत्न किया है। उनके द्वारा रचित कृति का नाम है- 'जैन सिद्धान्त दीपिका'। तत्त्वार्थसूत्र के पश्चात् प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में अनेक तात्त्विक एंव दार्शनिक ग्रन्थों तथा टीकाओं का निर्माण हुआ, किन्तु जैन सिद्धान्त को तत्त्वार्थसूत्र की भांति संस्कृत-सूत्रों में उपनिबद्ध करने के व्यवस्थित प्रयत्न का श्रेय आचार्य श्री तुलसी जी को ही जाता है। जैन सिद्धान्त दीपिका आचार्य श्री महाप्रज्ञ द्वारा सम्पादित है तथा तत्त्वार्थसूत्र की भांति दश अध्यायों में विभक्त है, जिन्हें 'प्रकाश' नाम दिया गया है। उमास्वाति कृत तत्त्वार्थसूत्र में जहाँ 344 सूत्र हैं (दिगम्बर परम्परानुसार 357 सूत्र हैं) वहां जैन सिद्धान्त दीपिका में 308 सूत्र हैं। तत्त्वार्थसूत्र का प्रारम्भ जहाँ मोक्षमार्ग के कथन से हुआ है, वहाँ जैन सिद्धान्त दीपिका का प्रारम्भ द्रव्य-विवेचन से हुआ है। जैन सिद्धान्त दीपिका' नाम से यह विदित होता है कि इसकी रचना का लक्ष्य जैन सिद्धान्तों को संक्षेप में
प्रकाशित करना है। तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2004 -
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