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________________ उत्तर-जिसे जिनदास महत्तर ने दशवैकालिक चूर्णि में ईंधन रहित अग्नि या शुद्धाग्नि कहा है, वह आग में प्रविष्ट लोहे के गोले को बनाया है। जीवसमास व्याख्या में मलधारी हेमचन्द्रसूरि द्वारा शुद्धाग्निः विद्युदग्निः कहा गया है, वह आकाशीय चमकने वाली बिजली ही है। आकाशीय चमकने वाली/ कड़कने वाली विद्युत और इलेक्ट्रीसीटी के रूप में प्रवाहमान विद्युत्-प्रवाह की भिन्नता के विषय में पहले ही स्पष्टता की जा चुकी है। इस कथन से तो यही सिद्ध होता है कि इलेक्ट्रीसीटी या बल्ब-प्रकाश अग्नि नहीं है, न निरिन्धन अग्नि है, न विद्युत् (Lightning) अग्नि है, न ईंधन के आधार पर जलने वाली अग्नि है। प्रश्न-24. दूसरी महत्त्व की बात यह है कि जीवसृष्टि की उत्पत्ति और स्थिति भी विभिन्न प्रकार से देखने को मिलती है तथा हवा, पानी, खुराक की आवश्यकता भी अनेक प्रकार से दिखाई देती है। उदाहरण के तौर पर मनुष्य, मछली और मगर इत्यादि प्राणी ऑक्सीजन के आधार पर जीवित रहते हैं। परन्तु उसमें भी तफावत है -1. मनुष्य हवा में से ऑक्सीजन लेता है। 2. जबकि मछली पानी में से ऑक्सीजन लेकर जीवित रहती है। पानी के बाहर हवा में ऑक्सिीजन पर्याप्त मात्रा में होने पर भी यदि मछली को पानी से बाहर निकाली जाए तो वह मर जाती है। पानी में ऑक्सीजन होते हुए भी यदि सामान्य व्यक्ति को पानी में डुबाया जाए तो वह मछली की भाँति जीने के बजाय मर जाता है। 3. जबकि मेंढक इत्यादि उभयचर प्राणी सागर और जमीन दोनों जगह पर ऑक्सीजन लेकर जीवित रहते हैं। इसी प्रकार से अग्निकाय की बात भी समझी जा सकती है। पन्नवणासूत्र में अग्निकाय की सात लाख योनि बताई गई है। सात लाख योनि वाले तेउकाय जीवों में से (1) मोमबत्ती, अगरबत्ती, दीपक, गैस, लकड़ी इत्यादि की अग्नि तो खुले वातावरण में से डायरेक्ट प्राप्त हो सके, वैसी हवा के आधार पर अपना अस्तित्व टिकाए रख सकती है। इसलिए प्रस्तुत में 'जलती हुई मोमबत्ती, अगरबत्ती इत्यादि के ऊपर यदि काँच का ग्लास उलटा रखा जाए तो कुछ समय में वह क्यों बुझ जाती है? यदि तार के माध्यम से बल्ब में वायु पहुँच सकती है तो ग्लास और जमीन के बीच में से अन्दर जा सके, ऐसे वायु से मोमबत्ती क्यों जलती हुई नहीं रह सकती?' ऐसे प्रश्न को कोई अवकाश ही नहीं रहता, क्योंकि सब प्रकार की पद्धति से मिलते सभी बादर वायुकाय अग्नि-उत्पादक होते ही हैं, ऐसा आगम की मान्यता के अनुसार नहीं लगता है अन्यथा खुली हवा में रहे हुए ऑक्सीजन के आधार पर पानी के बाहर लम्बे समय तक मछली क्यों जीवित नहीं रह सकती? तथा पानी में रहे ऑक्सीजन के आधार 38 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 125-126 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524620
Book TitleTulsi Prajna 2004 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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