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कुमाऊँ में जैन और बौद्ध धर्मों का प्रभाव
अवशिष्ट चिह्नों के सन्दर्भ में
- डॉ. कमला पन्त
हमारा देश हजारों वर्षों से महान् सभ्यता का केन्द्र रहा है। भारत के मन्दिर और शिल्पकला विशुद्ध भारतीय प्रतिभा हैं। यहाँ के मन्दिर उसी प्रकार की अपनी चीज है जैसे मिस्र के पिरामिड या एथेन्स के पारथेनान।' हमारे देश में विविध आराधना पद्धतियाँ और विचारधारायें पल्लवित और पुष्पित हुई हैं। भारतीय धर्म और आस्था रूपी महावृक्ष की जैसे वैदिक धर्म एक शाखा है उसी प्रकार जैन धर्म और बौद्ध धर्म भी शाखायें हैं। जरा-मरण के क्लेश से मुक्ति पाना प्राचीन उपनिषद्कालीन ऋषियों को भी लक्ष्य था और महावीर और बुद्ध का भी श्रुतिप्रमाण का निषेध करने के कारण ये अवैदिक कहे गए।
___ अपने आराध्यों को देवालयों में स्थापित करने की परम्परा सभी भारतीय धर्मों में दिखायी देती है। विभिन्न सम्प्रदायों की मान्यता, आराध्य और शिल्प के अन्तखश फर्गुसन, फूचे आदि विद्वानों ने मन्दिरों को भी ब्राह्मण मन्दिर, जैन मन्दिर और बौद्ध मन्दिर जैसे वर्गों में बाँटने का प्रयास किया। ब्राह्मण मन्दिरों के शैव और वैष्णव नाम से उपभेद किए गए। मन्दिर बनाने का उद्देश्य थाआध्यात्मिक चिन्तन के लिए शान्त, आराध्य देव की कल्पना से युक्त स्थल, मन्दिर के अन्दर प्रतिष्ठित मूर्ति का चिन्तन और मनन करके मन को एकाग्र करना।
भारत के पश्चिमी उत्तरप्रदेश के पर्वतीय स्थानों में असंख्य मन्दिर हैं। अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य से समृद्ध उत्तराखण्ड या उत्तराञ्चल के अन्तर्गत कुमाऊँ और गढ़वाल दो मण्डल आते हैं। भारत का यह क्षेत्र ऋषि मुनियों की
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- तुलसी प्रज्ञा अंक 125-126
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