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________________ machine must then recharge itself. In this our machine differs somewhat from a lightning storm where the cloud has such a massive charge that most lightning strikes are actually two to ten or more strokes using the same channel. [http:/www.mus.org/s/m/toe/ssparks.html] एक समय एक ही चिनगारी होती है। लेकिन प्रक्रिया बहुत तेज़ होती है। चिनगारी से गुंबज की विद्युत् शक्ति डिस्चार्ज हो जाती है। जिससे उस यंत्र को फिर से चार्ज करना पड़ता है। तूफानी वातावरण में आकाश में उत्पन्न होती बिजली से इस यंत्र में तफावत मात्र इतना है कि बिजली होने के समय बादल में इतना ज्यादा चार्ज होता है कि प्रायः प्रत्येक बिजली के कड़ाके में २ से १० बार चमकारे उत्पन्न होते हैं, जो एक ही प्रवाह में बहते हैं। शान्त चित्त से इस बात पर गहन विचार किया जाए तो हवा के संपर्क से विद्युत्प्रवाह घर्षणजन्य ऐसे ये महाकाय स्पार्क्स, इलेक्ट्रीसीटी को तेउकाय जीव रूप में स्वीकार करने के लिए निःसंदिग्ध बड़ा सबूत है। गुंबज में रही हुई इलेक्ट्रीसीटी अंदर में तो तेजी से जलती ही है। इसीलिए वोल्टेज बढ़ जाने से योग्य संयोगों में अपने आप चिनगारी के स्वरूप में बाहर निकल जाती है। इसीलिए वह तेउकाय जीवस्वरूप ही है।' 29 उत्तर- विध्यात अग्नि- राख से ढके हुए अंगारों के भीतर की अग्नि में अग्नि की क्रिया चालू रहती है। वहां निरन्तर "कंबश्चन" चालू है। इसलिए वह वास्तव में मंद अग्नि है। उस प्रक्रिया में अग्नि की क्रिया बंद नहीं होती। दियासलाई (मेचस्टीक) और मेचबोक्स में अग्नि पैदा करने की क्षमता मौजूद है पर जब तक दोनों में रगड़ नहीं होती, तब तक अग्नि पैदा नहीं होती। क्या मेचबोक्स में रखी हुई मेचस्टीक में भी 'विध्यात अग्नि' का अस्तित्व माना जा सकता है ? नहीं। ठीक उसी प्रकार तार में गुजरते विद्युत्-प्रवाह में भी ‘अग्नि' का अस्तित्व नहीं है। "इन्सुलेटेड" तार को ऑक्सीजन (या ओजोन) से सीधे सम्पर्क का अवसर नहीं मिल सकता, जबकि खुले ट्वीस्टेड वायर में सीधा हवा के साथ सम्पर्क का मौका मिल जाता है और उसके साथ ही यदि ज्वलनशील पदार्थ का संयोग भी मिल जाए तो अग्नि पैदा हो जाएगी। "आयनीकरण" होकर हवा में जो ऊर्जा का विकिरण होता है वह "स्पार्क" का ही रूप है, जिसके विषय में हम पहले चर्चा कर चुके हैं। स्मरण रहे गुंबज से होने वाले स्पार्क हो अथवा शोर्ट सर्किट से उत्पन्न स्पार्क हो अथवा हाई वाल्टेज वाले खुले तार के द्वारा आसपास की हवा (आदि से युक्त) के आयनीकरण से उत्पन्न स्पार्क हो, ये स्पार्क स्वयं तो निर्जीव विद्युत्-चुम्बकीय तरंगों के रूप में ऊर्जा का विकिरण मात्र है, जब इनके सम्पर्क में ज्वलनशील पदार्थ आता है और चूंकि वहाँ ऑक्सीजन (या ओजोन) मौजूद है तब अग्नि पैदा हो जाती है या आग लग जाती है। उस समय ही वहां तेउकाय जीव की उत्पत्ति होती है, अन्यथा नहीं। 44 - तुलसी प्रज्ञा अंक 124 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524619
Book TitleTulsi Prajna 2004 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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