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अंबनियों ने इस दिशा में व्यावहारिक पहल भी कर दी है। रिलायंस समूह गुजरात के गांधीनगर में 100 करोड़ रुपये का निवेश कर धीरुभाई अंबानी इंस्टीच्यूट ऑफ इनफॉरमेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी' नाम से एक निजी विश्वविद्यालय खोलने जा रहा है। इस निजी विश्वविद्यालय पर सरकारी मुहर लगवाने के लिए एक ड्राफ्ट बिल गुजरात सरकार के पास विचाराधीन है जिसे जल्दी ही विधानसभा की स्वीकृति मिल जाने की खबर है। इसके अलावा रिलायंस समूह 'धीरुभाई अंबानी फाउंडेशन' नाम से एक और निजी विश्वविद्यालय गुजरात के ही जामनगर शहर में खोलने की योजना पर काम कर रहा है। ये विश्वविद्यालय अमरीका के इस क्षेत्र के अग्रणी विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग में संचालित होंगे। अंबानियों ने शिक्षा के क्षेत्र में मुनाफा कमाने की नीयत को बड़े ही व्यवस्थित ढंग से अंजाम दिया है। पहले उन्होंने व्यापार एवं उद्योग पर प्रधानमंत्री की सलाहकार परिषद में अपनी घुसपैठ बनाई। फिर शिक्षा में सुधारी की सिफारिश करने वाली दो सदस्यीय समिति में एक सदस्य की जगह हथिया ली। फिर शिक्षा सुधारों के नाम पर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को राज्य या सरकार के मत्थे डालकर उच्च शिक्षा यानि सूचना और संचार तकनीक की शिक्षा को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सहित निजी निवेश के लिए खोलने की सिफारिश कर डाली। ___मुनाफाखोर वणिक बुद्धि ने अपनी चालों को सैद्धान्तिक जामा पहनाते हुए, सरकार को सुझाव दिया, 'भारत सरकार को विश्वविद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण हेतु स्वयं की भूमिका को पुनर्परिभाषित करना होगा। विज्ञान और प्रौद्योगिक, प्रबन्धन, अर्थशास्त्र, वित्तीय प्रबन्धन और वाणिज्यिक उपयोग के अन्य जरूरी विषयों के क्षेत्र में नए निजी विश्वविद्यालयों की स्थापना के प्रोत्साहन हेतु निजी विश्वविद्यालय अधिनियिम बनाया जाना चाहिए।... सरकार को इस दिशा में अग्रणी औद्योगिक घरानों को प्रोत्साहित करना चाहिए।16
प्रतिरोध के किसी भी स्वर की आशंका को समाप्त करने के लिए पहले सरकारी नियन्त्रण से मुक्ति, फिर अपनी मांगों को लेकर जागरूक तबके की अनुपस्थिति की प्रस्तावना। इस लिहाज से उच्च शिक्षा पर यह टिप्पणी गौरतलब है, 'हमारे विश्वविद्यालय राजनीति के अखाड़े बन गए हैं। उच्च शिक्षा की स्तरहीनता और अनुत्तरदायी भूमिका के लिये नेतागिरी करने वाले शिक्षक ही जिम्मेदार हैं। ... इस गंभीर मर्ज के ईलाज के लिए यह अपरिहार्य है कि राजनैतिक पार्टियों की यह आपसी समझदारी बने कि वे विश्वविद्यालयों और शैक्षिक संस्थाओं से दूर ही रहें। बल्कि इस दिशा में उन्हें प्रतिबन्ध की अनुशंसा करनी चाहिए।17
उच्च शिक्षा की समग्रता और बहुजनहितायता की अवधारणाओं को नष्ट करने की साजिश जारी है और ज्ञान की उपलब्धि सिर्फ यही होने जा रही है कि स्वयं को एक बेहतर कच्चे उत्पाद में तब्दील कर देशी-विदेशी उद्योगपतियों से अर्ज की जाए -'म्हाने चाकर राखो जी' सच अपनी जगह प्रखरता से इस तथ्यात्मक रुख के साथ खड़ा है कि विकास की कोई भी अवधारणा 'समान अवसर प्रेरित' चिन्तन के बिना बेमौत मरने के लिए अभिशप्त है।
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तुलसी प्रज्ञा अंक 124
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