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________________ परंपरा रही है, बिना कोई तदर्थ वैकल्पिक तंत्र विकसित किए वित्तीय कटौति यदि वहाँ की जाती है तो उससे जुड़े सभी तंत्र- कर्मचारी, विद्यार्थी, समाज शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों से वंचित हो जाएँगे। सरकारी नीतियाँ उस शून्य से बड़ी चालाकी और बेशर्मी से मुंह मोड़ने की वकालत कर रही हैं। उसी तरह ‘विद्यालय विकास समिति' के रूप में संस्थाओं की स्वायत्तता की बात द्वारा प्रबन्धन-तंत्र को जो असीमित अधिकार के प्रस्तावित प्रावधान हैं, वे भी दमनकारी, अमानवीय, अलोकतांत्रिक तथा भारतीय की मूलभूत गरिमा के खिलाफ, शुद्ध मुनाफे और लाभ की मानसिकता से संचालित प्रेरित प्रबन्धन तंत्र के हितों के रक्षक होंगे। हाँ, सरकार भले ही अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने में सफल होगी। 4. म्हाने चाकर राखो जी (समग्रता और बहुजनहितायता की अवधारणा का निषेध) __ उदारीकरण के पीछे जो ताकतें क्रियाशील हैं, उनकी मंशा है कि सरकार विद्यालयी शिक्षा की जिम्मेदारी स्वयं ले और उच्च शिक्षा के वे क्षेत्र जो शुद्ध मुनाफे से संचालित हैं, उन्हें निजी क्षेत्र को सौंप दिया जाय अर्थात् प्रबन्धन, इंजीनियरिंग, डॉक्टरी, डिजाइनिंग, विज्ञापन, सूचना-प्रौद्योगिक आदि का संचालन निजी क्षेत्र करें और बाकी विज्ञान, समाजशास्त्र, मानसिकी, कला आदि विषय सरकार के जिम्मे रहें। इस तरह उच्च शिक्षा द्विभागीकृत हो गई है। ज्ञान की हमारी परंपरागत समझदारी जिज्ञासा, कौशल, प्रश्न पूछने की ताकत, साहस, समग्र सोच बहुजनहित आदि गुणों से जुड़ी है। लेकिन समझने की यह प्रक्रिया भौतिक सफलता या बाजार में बिकने वाली क्षमता के रूप में पर्यवसित होती जा रही है। बाजार के तराजू में तौलने और ऊँची कीमत मिलने वाला ज्ञान एक तरफ, दूसरी तरफ मानसिकी, सामाजिक समझदारी संचालित ज्ञान जिसे हाशिये पर ढकेलने, फिर बेमौत मारने की प्रक्रिया चल चुकी है। निरंतर समद्ध होते प्रबन्धन और प्रौद्योगिकी शिक्षा संस्थान एक तरफ, निराशा, कुंठा, नकारात्मक दृष्टि पैदा करने वाले पारंपरिक उच्च शिक्षा संस्थान दूसरी तरफ जहाँ न्यूनतम सुविधाएँ भी नहीं हैं और बाजार में उनके विद्यार्थियों के समायोजन के अंतहीन दुःख हैं ही, जो इस बाजारीकृत वैश्वीकृत दुनिया की आधारभूत विडंबना है। इस उच्च शिक्षा की नयी दुनिया में वह सबसे सफल है, जो व्यक्तित्वहीन चाकरी में माहिर हो और इस कदर माहिर हो कि सामाजिक सरोकार जैसे दायित्व से अच्छी तरह पल्ला झाड़ चुका हो। कला और मानविकी के क्षेत्र में उच्च शिक्षा की दुनिया में फिलहाल सरकारी अनुदान सत्तर से अस्सी प्रतिशत है। प्रति छात्र औसत खर्चा 4000 से 5000 वार्षिक है, जबकि छात्र 1500 से 2000 रुपये वार्षिक शुल्क अदा कर रहे हैं। अब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अपनी अनुदान की भूमिका से हट रहा है, ऐसा नयी नीतियों के तहत हो रहा है। व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की फीस लाखों रुपये में है। उच्चतम न्यायालय कैपिटेशन फीस पर पहले से ही 32 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 124 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524619
Book TitleTulsi Prajna 2004 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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