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15. शिक्षा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दी जानी चाहिए। शुरू में इसे विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा तक सीमित किया जाना चाहिए।
16. प्राथमिक शिक्षा एवं साक्षरता के लिए शिक्षा विकास कोष की स्थापना कर उसमें दिए गए धन को आयकर से मुक्त किया जाना चाहिए। विदेशों छात्रों को आकर्षित करने के लिए भारतीय विश्वविद्यालयों तथा संस्थानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
17. विश्वविद्यालय राजनीति के अखाड़े बन गए हैं, लिहाजा सभी राजनैतिक पार्टियों में यह सहमति बनाई जानी चाहिए कि वे शिक्षा संस्थानों से दूर रहेंगे। कानून बनाकर शिक्षा संस्थानों में राजनैतिक गतिविधियों पर पूरी पाबंदी लगा देनी चाहिए।
__18. ज्ञानी समाज की रचना अकेले शिक्षा के इनपुट से नहीं हो सकती। आर्थिक अवसरों का होना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। शिक्षा जरूरी है लेकिन वही पर्याप्त नहीं है। शिक्षा और ज्ञान को दिशा देने के अवसरों का सृजन भी जरूरी है। नए अवसरों को पोषण करने के लिए अर्थव्यवस्था को नियंत्रण से मुक्त करने की जरूरत है। ये नए अवसर, बदले में नई तरह की शिक्षा को संभव बनाएंगे। नए अवसर प्रतिभाओं के देश से बाहर जाने की प्रक्रिया को भी उलट देंगे। इस अर्थ में, शैक्षिक और आर्थिक सुधार एक-दूसरे को मजबूत बनाएंगे।
19. भारत में शोध बहुत एक हद तक अभिजात्यवादी अवधारणा है। आगामी वर्षों में अनुमादित औद्योगिक वृद्धि के मुद्देनजर स्नातक स्तर से ही विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में शोध को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
20. प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा का दायित्व सरकार वहन करे और विज्ञान, प्रौद्योगिक तथा संचार तकनीक आधारित उच्च शिक्षा में निजी कम्पनियों को पूंजी निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
देश के जागरूक बुद्धिजीवी वर्ग ने इस प्रतिवेदन का जोरदार शब्दों में विरोध किया है। शिक्षक आन्दोलनों और शिक्षा के सामाजिक सरोकारों पर प्रखर विचार रखने वाले प्रकाश चतुर्वेदी सवाल उठाते हैं, 'प्रतिवेदन में बड़ी ही चालाकी और चतुराई से शिक्षा को सामाजिक संदर्भो से अलग कर दिया गया है, क्योंकि रिपोर्ट में यह चिन्ता तो व्यक्त की गयी है कि देश में गरीबी है, आवश्यक संसाधनों का अभाव है, देश की अधिसंख्य जनसंख्या अशिक्षित है तथा उसकी आवश्यकताओं के अनुरूप हमारे पास साधन नहीं है। इन चिन्ताओं में नया कुछ भी नहीं है, क्योंकि इन स्थितियों से देश का सामान्य व्यक्ति भी परिचित है। असल चिन्ता तो यह होनी चाहिए कि देश की गरीबी को कैसे दूर किया जाए? देश की अशिक्षित जनता को शिक्षित करने के लिए किस तरह साधन जुटाए जायें? और यहीं हमारे व्यापारी शिक्षाशास्त्री मूल प्रश्न को छोड़ सम्पन्न वर्ग के लोक की ओर बढ़ जाते हैं और रिपोर्ट कहने लगती है कि
तलसी प्रजा अप्रैल-जन. 2004 |
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