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________________ पद्धति लागू की जानी चाहिए लेकिन उसमें क्षेत्रीय एवं स्थानीय स्तर पर खासकर भाषा, इतिहास एवं सांस्कृतिक विविधता की संभावना रखी जानी चाहिए। 7. शिक्षा के प्रबन्धन को विकेन्द्रित किया जाना चाहिए। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा तथा साक्षरता कार्यक्रमों में वित्तीय एवं प्रबन्ध की जिम्मेदारी पंचायत और नगरपालिका स्तर पर होनी चाहिए। 8. व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए सैट, जी. आर. आई. एवं जीमैट की तर्ज पर राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षाएँ आयोजित की जानी चाहिए। साथ ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण का आधार प्राप्तांकों को बनाया जाना चाहिए तथा इसके लिए माइग्रेशन सर्टिफिकेट (स्थानान्तरण प्रमाण-पत्र) की आवश्यकता को खत्म किया जाना चाहिए। 9. भारतीय शिक्षा व्यवस्था बाजारोन्मुख नहीं है। लिहाजा, शिक्षा को बाजारोन्मुख यानि सूचना प्रौद्योगिक-केन्द्रीय बनाया जाना चाहिए। आज के भारत की यही जरूरत है। शिक्षण संस्थानों में पाठ्यक्रम एवं सुविधाओं को निरन्तर नवीनतम बनाए रखना चाहिए। 10. सरकारी स्कूलों में भवन, टेलीफोन एवं कम्प्यूटर के लिए प्राथमिकता के आधार पर राशि मुहैया कराई जानी चाहिए। विश्वविद्यालयों को दी जाने वाली सरकारी वित्तीय सहायता कम की जानी चाहिए तथा उन्हें आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया जाना चाहिए। इन संस्थानों के पाठ्यक्रमों को भी समयानुकूल बनाया जाना चाहिए। 11. सरकार की भूमिका को प्राथमिक शिक्षा के लिए राशि प्रदान कर अनिवार्य बनाने, शत-प्रतिशत साक्षरता लाने, गैर-बाजारोन्मुखी शिक्षा, जैसे उदार और परफॉरमिंग कलाओं की मदद करने व कोष प्रदान करने, छात्रों को कर्ज दिलाने में वित्तीय गारंटी देने, पाठ्यक्रम तथा उसकी गुणवत्ता में एकरूपता लाने तथा शैक्षिक विकास योजना बनाने तक सीमित किया जाना चाहिए। कोष मुहैया कराने वाली संस्था के रूप में यूजीसी की भूमिका समाप्त हो जानी चाहिए। 12. कम सरकारी सहायता पाने या नहीं पाने वाले संस्थानों का संचालन तथा पाठ्यक्रम चयन में कल्पनाशीलता की स्वतन्त्रता दी जानी चाहिए। ___13. विज्ञान, तकनीकी, प्रबन्ध तथा वित्तीय क्षेत्रों में पढ़ाने के लिए निजी विश्वविद्यालय खोलने के लिए निजी विश्वविद्यालय अधिनियम बनाया जाना चाहिए। ___14. वित्तीय उपक्रमों में स्तर-निर्धारण के लिए स्टैंडर्ड एंड पूअर्स या क्राइसिल जैसी संस्थाओं की तरह स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों या संस्थानों के स्तर को निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा समय-समय पर उनकी रेटिंग कराई जानी चाहिए और उनका स्तर तय किया जाना चाहिए। 28 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 124 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524619
Book TitleTulsi Prajna 2004 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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