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________________ सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का एक अर्थ विभिन्न भाषाई समूहों को समान स्वायत्तता तथा विकास की स्वतन्त्रता देना भी है। भाषाई विविधता को स्वीकार करते हुए एक ऐसी संपर्क भाषा भी हो, जिसे सभी स्वीकार करें। भिन्न-भिन्न समाज में कला, संगीत, नृत्य आदि की विविधताएं एवं भिन्नताएं हैं, अतएव इनकी अभिव्यक्ति की स्वायत्तता एवं समान प्रेरणा भी आवश्यक है ताकि समाज के सभी सदस्य संस्कृति की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के अवसर प्राप्त कर सकें। विचारों की अभिव्यक्ति की स्वन्त्रता भी अपेक्षित है। एक व्यक्ति को बौद्धिकतापरक, आलोचनात्मक एवं भविष्योन्मुखी विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता हो। भले ही वे विचार सरकार, धर्म, मूल्यों एवं विचारधाराओं के विपरीत हैं। स्व अभिव्यक्ति समाज के सभी वर्गों में समानरूप से विकसित नहीं हुई। शिक्षा द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे विकसित करना चाहिए। स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के विकास हेतु शिक्षातंत्र एवं संचारतंत्र पर सरकार, संगठन अथवा सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक वर्ग का नियन्त्रण न हो। लोकतंत्र का विरोधाभास आधुनिक समाज में विषमता की समस्या राजनीतिक एवं अर्थतंत्र के बीच जटिल संबन्धों पर निर्भर है। प्रजातन्त्र एवं वैधानिक परिवर्तनों से व्यक्ति-व्यक्ति को समान तो कह दिया गया है पर अभी भी सम्मान, संपत्ति व शक्ति की दृष्टि से असमानता व्याप्त है। यह एक विरोधाभास ही है कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था जो एक ओर निष्पक्षता, स्वच्छ प्रशासन, खुलेपन व समान अधिकारों पर निर्भर है तो दूसरी ओर प्रगतिशील समाज के विभिन्न वर्गों में धन के वितरण में विषमता है। आधुनिक प्रजातन्त्र तो एक तरह से इस असंगतता के लिए बाध्य है, क्योंकि समानता व आर्थिक असमानता का संघर्ष उसमें है। व्यक्तिगत स्तर पर भी नागरिक आर्थिक रूप से असमान समाज का अनुभव करते हैं, जबकि राजनैतिक व्यवस्था अवसरों के स्तर पर स्वतंत्र, समान और खुलेपन की आवाज बुलन्द करती है। राजनैतिक व्यवस्था सामाजिक समानता को मानने के लिए बाध्य है, क्योंकि सरकार चुनाव पर निर्भर है। वह नागरिक कल्याण और पुनः वितरण व्यवस्था को झुठला नहीं सकती पर दुर्भाग्य यह भी है कि वे मुक्त पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की आवश्यकता को भी नकार नहीं पाती। यह एक बड़ी समस्या है, विशेषकर पूंजीवादी लोकतंत्रों के समक्ष कि कल्याण व आर्थिक प्रतिद्वन्द्विता को एक साथ कैसे जोड़ा जाए? कैसे आर्थिक परिलाभ का वितरण हो जिससे जनसंख्या के एक बड़े भाग के जीवन स्तर को सुधारा जा सके। आर्थिक पुनर्वितरण पर तो सरकारें बल देती हैं पर खुले आर्थिक विकास रूपी अश्व को कैसे नियंत्रित किया जाए, यह जानने का कोई प्रयत्न नहीं करता। उपयोग व प्राप्तियों के स्तर पर सामाजिक विषमता अपरिहार्य है, बशर्ते सामाजिक तुलसी प्रज्ञा अप्रैल-जून, 2004 - 3 - 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524619
Book TitleTulsi Prajna 2004 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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