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________________ प्रश्न- 11 - "श्वेताम्बर, दिगम्बर, स्थानकवासी, तेरापंथी-चारों पंथ के सभी जैन लोग आकाशीय बिजली को निर्विवाद रूप से तेउकाय जीव स्वरूप ही मानते हैं। महाशक्तिशाली आकाशीय बिजली जब नीचे गिरती है तब उनसे होने वाले संभावित नुकसान को रोकने के लिए बड़ी-बड़ी फेक्टरियां, ऊँची इमारतें, महाकाय मंदिरों, विराट होस्पिटल वगैरह के ऊपर के छत के भाग में अर्थिंग करने के लिए त्रिशूल आदि आकार में तांबे के वायर वगैरह की विशिष्ट रचना की जाती है और उस वायर को जमीन में बहुत नीचे तक पहुँचाया जाता है। नीचे गिरती बिजली को अपनी ओर खींच कर यह वाहक तार उसको जमीन में नीचे पहुँचाता हैं। उससे फेक्टरी वगैरह संभवित नुकसान से बच जाते हैं। इस सन्दर्भ में तो सभी धर्मात्मा-महात्मा और वैज्ञानिक सम्मत हैं। तार में प्रवेश करके जमीन में जा रही आकाशीय बिजली को उस अवस्था में क्या निर्जीव मानेंगे? यह बात शक्य ही नहीं, क्योंकि जैसे आकाशीय बिजली अपने ऊपर गिरने से आदमी जल जाता है, कभी-कभी मर भी जाता है वैसे ही जब आकाशीय बिजली तांबे के तार में से प्रसार हो रही हो तब उस तार को पकड़ने वाला आदमी भी जल जाता है, कभी-कभी मर भी जाता है। इसलिए मानना ही पड़ेगा कि जैसे आकाश में उत्पन्न होने वाली बिजली सजीव है उसी तरह तार में से प्रसार हो रही बिजली भी उस अवस्था में सजीव ही है। ___यह प्रक्रिया बिलकुल इलेक्ट्रीसीटी जैसी ही है। फर्क सिर्फ इतना ही है कि आकाशीय बिजली पहले प्रकाशरूप होती है, पश्चात् तार में प्रवेश कर यह अदृश्य इलेक्ट्रीसीटी का स्वरूप धारण करती है जबकि टरबाइन वगैरह के माध्यम से उत्पन्न होने वाली बिजली पहले अदृश्य इलेक्ट्रीसीटी के स्वरूप में उत्पन्न होकर बाद में बल्ब के फिलामेंट में प्रकाश स्वरूप में दिखाई देती है। इस तरह टरबाइन वगैरह के माध्यम से उत्पन्न होने वाली कृत्रिम बिजली-इलेक्ट्रीसीटी और आकाशीय बिजली दोनों का स्वरूप एक ही है-ऐसा सिद्ध होता है। आकाशीय बिजली तो सजीव है ही। इसलिए उसके समान कृत्रिम बिजली-इलेक्ट्रीसीटी भी तेउकाय जीव स्वरूप ही है, यह सिद्ध होता है। आकाशीय बिजली के नुकशान से बचने के लिए जैसे Earthing किया जाता है उसी प्रकार का Earthing गगनचुंबी इमारत-फेक्टरी वगैरह में कृत्रिम बिजली के नुकसान से बचने के लिए किया जाता है। आकाशीय बिजली जब अर्थिंग तार में से पसार हो रही हो तब यदि उस तार के साथ बल्ब को योग्य स्वरूप से जोड़ा जाए तो वह बल्ब भी प्रकाशित होता ही है। यह बाबत विज्ञान ने प्रयोग द्वारा सिद्ध की है। इस तरह आकाशीय बिजली और कृत्रिम बिजली के बीच अनेक प्रकारों से समानता ही दिखाई देती है। इसलिए आकाशीय बिजली की भाँति वायर में से पसार होती बिजली-इलेक्ट्रीसीटी भी सजीव ही है। 21 तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2004 - - 77 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524618
Book TitleTulsi Prajna 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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