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________________ प्रयत्न है। इसलिए न जैन दर्शन के आधार पर और न ही विज्ञान के आधार पर यह सिद्ध होता है कि स्पेस में ऑक्सीजन है। हवा या ऑक्सीजन केवल "वातावरण" जहाँ तक है वहाँ तक विद्यमान है। वातावरण पृथ्वी की सतह से कवेल 400 किलोमीटर तक ही है। (इन बातों की चर्चा की जा चुकी है।) प्रश्न-10- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार करें तो वर्षाऋतु में आकाश में उत्पन्न होने वाली बिजली और वायर में से प्रसारित होने वाली बिजली के स्वरूप में कोई अन्तर नहीं है। दोनों विद्युत् का आन्तरिक स्वरूप एक जैसा है। वर्षाऋतु में बादलों के घर्षण से उत्पन्न होने वाली बिजली तो आगमानुसार सचित्त ही है, सजीव ही है। यह तो निर्विवाद सत्य है तथा कृत्रिम प्रयत्न के द्वारा टरबाइन आदि के माध्यम से उत्पन्न की जाने वाली बिजली का स्वरूप कुदरती बिजली जैसा ही है। अवकाशीय बिजली और इलेक्ट्रीसीटी इन दोनों का निर्माण, दोनों में होने वाली बिजली, टरबाइन के माध्यम से उत्पन्न होने वाली बिजली, बेटरी-सेल से उत्पन्न होने वाली बिजली अथवा अन्य किसी भी प्रक्रिया द्वारा उत्पन्न होने वाली बिजली, सभी का स्वरूप एक जैसा ही है। ___Kite & Key experiment करने वाले बेन्जामीन फ्रेंकलीन नाम के वैज्ञानिक ने १७५२ के वर्ष में शोध करके ज़ाहिर किया है कि आकाश में उत्पन्न होने वाली बिजली और वायर में से प्रसार होने वाली इलेक्ट्रीसीटी-ये दोनों एक ही हैं। यह जानकारी इन्टरनेट द्वारा प्राप्त की जा सकती है। ___Franklin Institute, Philadephia U.S.A. “He did make the important discovery that lightning and electricity are the same.' {http:/sIn.fi.edu./ tfi/exhibitr/Franklin.html] फ्रेंकलीन के मतानुसार आकाश में होने वाली बिजली इलेक्ट्रीसीटी का ही एक प्रकार का उत्सर्जन है। यह रही इन्टरनेट द्वारा मिलती जानकारी Info please Encyclopeida ... Which proved that lightning is an electrical discharge, (http:/ www.info.please.com/c16/people/A0858229.html) 'Science Encyclopeida पुस्तक में Electricity Chapter (पृष्ठ-228) में बताया है कि “Lightning is a form of Electricity” अर्थात् आकाशीय बिजली यह इलेक्ट्रीसीटी का ही एक प्रकार है। इस प्रकार विज्ञान की दृष्टि से तो आकाश में उत्पन्न होने वाली बिजली और वायर में से प्रसार होने वाली इलेक्ट्रीसीटी एक ही है-इतना निश्चित होता है। स्व. डॉ. दौलतसिंहजी कोठारी ने भी स्पष्ट शब्दों में बताया है कि 'विज्ञान सचित्त-अचित्त की परिभाषा पर विचार नहीं करता। इसलिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विद्युत को अचित्त कहने का कोई अधिकार नहीं तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2004 । 75 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524618
Book TitleTulsi Prajna 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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