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और बिजली का वहाँ आगमन - यह दोनों घटनाएँ होने से फिलामेंट जल जाता है। इसीलिए टूटा हुआ बल्ब प्रकाशित नहीं होता।
उत्तर- जैसे उपर्युक्त दलील में पहले सचित्त तेउकाय का अस्तित्व मान लिया और फिर उसे सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया, उसी प्रकार प्रस्तुत दलील में भी देखा जा सकता है
(1) कोई भी व्यक्ति इस प्रकार की दलील को कैसे स्वीकार कर सकता है ? बल्ब का प्रकाशित होना पहले अग्नि है ही नहीं, तो फिर प्रमाण से बहुत ज्यादा वायु अथवा विरोधी वायु से उसका बुझ जाना कैसे संगत है? हम एक बार पुनः इलेक्ट्रीसिटी ऊर्जा के रूपान्तरण को समझें
1. बल्ब में टंगस्टन का पतला तार जलता नहीं है, इलेक्ट्रीक ऊर्जा प्रकाश एवं उष्मा में रूपान्तरित होती है। वहां कंबश्चन (दहन) है ही नहीं, क्योंकि वहाँ ऑक्सीजन नहीं है।
2. इलेक्ट्रीक हीटर जो खुले आकाश में भी चलता है, वहाँ तो ऑक्सीजन विद्यमान है। वहाँ बहुत वेग वाली वायु से हीटर क्यों नहीं बुझ जाता? वस्तुतः हीटर में तार का गर्म होना और उष्मा में बदलना इस क्रिया में ऑक्सीजन या वायु का कोई संबंध नहीं है।
3. बिजली-प्रवाह में जब प्रतिरोध होता है, तो पदार्थ में ताप उत्पन्न होता है यानि विद्युत्-ऊर्जा ताप-ऊर्जा में बदलने लगती है। बल्ब में अवरोध ज्यादा होता है। ताप की मात्रा अवरोध के समानुपाति है। छोटे तार की अपेक्षा लम्बा तार अधिक अवरोध पैदा करता है। बल्ब की अपेक्षा हीटर में तार लम्बा होता है, इसीलिए हीटर में तापमान अधिक पैदा होता है। तांबे का तार बहुत कम अवरोध पैदा करता है, अत: वह बहुत कम गर्म होता है जब बिजली का प्रवाह उससे गुजरता है। टंगस्टन की अवरोधकता तांबे की अपेक्षा अधिक है। उसके तार में विद्युत् प्रवाह का परिवर्तन उष्मा-ऊर्जा और प्रकाश-ऊर्जा में आसानी से होता है। टंगस्टन का पिघलांक ऊंचा होने से वह सामान्यत: पिघलता नहीं है।
___ 4. जब किसी चालक (तार) का तापमान उसके ज्वलन-बिन्दु तक पहुंच जाये और उसके आसपास की हवा से रासायनिक क्रिया का अवसर मिल जाये तो वह जल सकता है। इस जलने की क्रिया में ताप व प्रकाश पैदा होता है। इस रासायनिक क्रिया से उस चालक पदार्थ का ऑक्साइड बनता है।
5. धातु में विद्युत् धारा प्रवाहित होने से उस धातु में ताप की ऊर्जा पैदा होती है। यह ताप उसकी अवरोधक शक्ति पर निर्भर करता है। विद्युत्-प्रवाह से जो ताप पैदा होता है उससे हीटर में चालक (धातु) पदार्थ लाल गर्म हो सकता है या पिघलकर तरल रूप में बदल
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तुलसी प्रज्ञा अंक 123
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