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________________ प्रश्न : बल्ब में किन-किन प्रकार की वायुओं को भरा जाता है और उनके प्रभावों में क्या-क्या भिन्नता है? उत्तर : बल्ब लाईट के कांच के आवरण के भीतर हवा को नहीं रखा जा सकता, क्योंकि टंगस्टन धातु (फिलामेंट) जब गरम होती है तो ज्वलनशील बन जाती है और यदि उसमें ऑक्सीजन विद्यमान हो, तो वह जल जाएगी। ऐसे बल्बों के विकास में थोमस (आल्वा) एडिसन का एक मुख्य अवदान यही था कि उन्होंने बल्ब की सारी हवा को बाहर निकालने की विधि सिखाई किन्तु जिस बल्ब में कोई गैस नहीं होती, बल्ब अच्छी तरह कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि टंगस्टन (धातु) ऊंचे तापमान पर वाष्पीकृत हो जाती है अर्थात् उसके परमाणु घनावस्था से सीधे उड़कर वाष्पावस्था में चले जाते हैं। यदि बल्ब में कोई वायु न हो तो टंगस्टन का प्रत्येक परमाणु जो फिलामेंट से निकलेगा, वह बिना किसी रूकावट के सीधे ही बल्ब की काच की दीवारों में भीतरी भाग में हमेशा के लिए जमा हो जाएगा या चिपक जाएगा। केवल कुछ प्रकार की बल्ब लाइटें ही ऐसी होती हैं जिनमें अन्दर शून्यावकाश होता है, बाकी सामान्य बल्बों में थोड़ी मात्रा में आर्गन और नाइट्रोजन वायु होती हैं। आर्गन और नाइट्रोजन वायु रासायनिक दृष्टि से निष्क्रिय है। इसलिए टंगस्टन का फिलामेंट आर्गन और नाइट्रोजन में ज्वलनक्रिया नहीं कर सकता, (क्योंकि ऑक्सीजन का अभाव है) उधर आर्गन और नाइट्रोजन के अणुगुच्छ इतने भारी होते हैं कि टंगस्टन के परमाणु, जो कि फिलामेंट से निकलता है, उनसे टकराता है और पुनः फिलामेंट की ओर लौट जाता है। इस प्रकार आर्गन और नाइट्रोजन वायु फिलामेंट के आयुष्य को बढ़ा देते हैं। दुर्भाग्य से ये वायु भी उष्मा को कन्वेक्शन के द्वारा फिलामेंट से ग्रहण करती रहती हैं। इसका प्रमाण यह है कि बल्ब के ऊपरी हिस्से में टंगस्टन से निकले हुए परमाणु काले धब्बे (Sanudge) के रूप में जमा हो जाते हैं। ऊपर दिखाई देने वाला काला धब्बा टंगस्टन के उन परमाणुओं के जमा होने से बनता है जो वापिस फिलामेंट में नहीं लौट पाते हैं, पर गरम आर्गन और नाइट्रोजन वायुओं के साथ ऊपर उठ जाते हैं। कुछ विशेष लाइटों में बल्ब में "क्रिप्टॉन"गैस भरी जाती है जो आर्गन गैस की भांति ही रासायनिक दृष्टि से निष्क्रिय ही है। किन्तु क्रिप्टोन का परमाणु आर्गन के परमाणु की अपेक्षा से अधिक भारी होता है। इसलिए वह टंगस्टन के परमाणुओं को वाष्पीकृत होने के बाद वापिस फिलामेंट की ओर ढकेलने में अधिक सक्षम होते हैं । क्रिप्टोन गैस का एक लाभ और भी है कि वह आर्गन की अपेक्षा उष्मा का मंदतर वाहक है, इसलिए उसकी उपस्थिति में फिलामेंट अपनी ऊर्जा को और अधिक मात्रा में दृश्य प्रकाश की ऊर्जा में परिवर्तित कर सकता है। दुर्भाग्य से क्रिप्टोन की मात्रा हमारे वातावरण में बहुत स्वल्प होने से उसका प्रयोग खर्चीला पड़ जाता है। इसीलिए उसका उपयोग केवल विशिष्ट लाइटों के बल्ब में किया जाता है तथा साथ में नाइट्रोजन का भी थोड़ा मिश्रण किया जाता है। तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2004 - - 47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524618
Book TitleTulsi Prajna 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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