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________________ विन्ध्यगिरि के मन्दिरों की स्थापत्य एवं मूर्तिकला -विन्ध्यगिरि में आठ मन्दिर हैं । विन्ध्यगिरि के मन्दिरों के चारों तरफ जो परकोटा है उसके किवाड़ नहीं है। वर्षों से यह दरवाजा दिन-रात खुला पड़ा है, जो चाहे आये और दर्शन करके अपना जन्म सफल कर लें। परकोटे की दीवार पर चूना फेरकर उसके ऊपर गेरुआ रंग की लम्बी -लम्बी धारियां खींच दी गई हैं । दक्षिण में ऐसी धारियां पवित्र स्थान की सूचक मानी जाती हैं। __ गोम्मटेश्वर के परकोटे का निर्माण गंगराज ने कराया था। गंगराज होय्यसल नरेश विष्णुवर्धन के सेनापति थे। इस घेरे में आठ मन्दिर हैं, उनका वर्णन इस प्रकार है 1. चौबीस तीर्थंकर- यह बहुत ही छोटा मन्दिर है। इस मन्दिर के भीतर एक गर्भगृह, उसके बाद सुखनासी (एक स्थान) और द्वार मण्डप है। इस मन्दिर में किसी तीर्थंकर की कोई खास मूर्ति नहीं है बल्कि पत्थर की पट्टियों पर नीचे की ओर तीन मूर्तियां खड़ी हैं और उनके ऊपर 21 छोटी-छोटी मूर्तियां गोल प्रभामण्डल में अंकित की गई हैं। 2. ओदेगल बस्ती- यह सबसे बड़ा मन्दिर है। यह चबूतरे पर बना है। दीवारों को सम्भालने के लिए टेके लगाने के कारण यह नाम पड़ा है। इसके गर्भगृह के तीनों द्वार पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण दिशा की तरफ हैं, जिनमें आदिनाथजी, शांतिनाथजी और नेमिनाथजी की बहुत अच्छी विशाल मूर्तियाँ स्थापित हैं । इसी कारण इस बस्ती का नाम त्रिकुट बस्ती भी पड़ गया है। ओदेगल का अर्थ है- आधार या टेका देना, जिसे आगे चलकर मुगल शासकों ने इसका नाम 'तोड़' कर दिया। इनके शासन काल में कलात्मक दृष्टि से सुन्दरता प्रदान करने के लिए इनकी आकृति सर्पाकार, सिंहाकार, गजाकार आदि होने लगी। 3. चेत्रण्ण बस्ती- इस बस्ती के मध्य में एक मन्दिर है । इसमें चन्द्रप्रभ भगवान की ढाई फीट ऊँची प्रतिमा विराजमान है । मन्दिर में एक गर्भगृह है, एक द्वारमण्डप है और भीतर ओसार है। पास में ही गहरा जलकुण्ड है। इसी जलकुण्ड के जल से भगवान बाहुबली का मस्तकाभिषेक होता है। ___4. सिद्वर बस्ती- यह मन्दिर है तो छोटा सा ही परन्तु सिद्ध भगवान का स्थान है। इसमें तीन फुट ऊंची सिद्ध भगवान की मूर्ति विराजमान है। मूर्ति के दोनों और 6-6 फुट ऊंचे खञ्चित स्तम्भ हैं। दोनों पर अनेक मूर्तियाँ अंकित हैं। 5. त्यागद ब्रह्म स्तम्भ- इसका दूसरा नाम चागद कंब भी है। इसी स्थान पर खड़े होकर चामुण्डराय ने दान दिया था और अपने उपकारियों का उपकार स्वीकार किया था। यह स्तम्भ तीन -चार वर्ष पहले इस तरह अधर में लटका था कि हर कोई अपना रूमाल उसके नीचे से निकाल सकता था। यहीं पर भगवान बाहुबली की प्रतिमा है जिसे चामुण्डराय ने बनवाया था। बाहुबलीजी के दरबार में जाने के लिए जो दरवाजा है इस दरवाजे की कुछ खासियत है। इसमें न कोई जोड़ है, न तोड़, न ही कहीं सीमेन्ट है और न कहीं चूना लगा है। एक बड़ी पर्वतशीला को काटकर के यह दरवाजा बनाया गया है। यह इतना मजबूत है कि 38 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 123 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524618
Book TitleTulsi Prajna 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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