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________________ आर्थिक दृष्टि से एक-दूसरे का शोषण न करे। राजनीतिक दृष्टि से शक्तिशाली राष्ट्र असमर्थ राष्ट्रों से स्वतन्त्रता, समता और भ्रातृत्व का व्यवहार करें। धार्मिक दृष्टि में उदारता और सर्व धर्म समभाव के सिद्धान्त की स्थापना आवश्यक है। अतः अन्तर्राष्ट्रीय सामंजस्य की पूर्व शर्त के रूप में आर्थिक न्याय, समानता और राज्यों के मध्य शान्तिपूर्ण सहयोग न्याय की दिशा की ओर क्रमश: विकासवादी चरणों का परिचायक है। गाँधी के अनुसार एक राष्ट्र के द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण और एक राष्ट्र पर दूसरे राष्ट्र के प्रभुत्व के लिए ऐसे संसार में कोई स्थान नहीं हो सकता, जो युद्ध मात्र का अन्त करने का प्रयत्न कर रहा हो। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि युद्ध के लिए उपस्थित खतरों के उन्मूलन के लिए मानव द्वारा किये गये समस्त प्रयासों के पश्चात् भी एक निराशा का माहौल व्याप्त है। इसका कारण सम्भवतः किये गये प्रयासों की दिशाहीनता है। गाँधी वो दृष्टि प्रदान करने की चेष्टा करते हैं, जो कि न केवल अल्पकालिक शान्ति स्थापित करेगी वरन् युद्ध की समस्या का हमेशा के लिए परिहार कर देगी। अत: बीसवीं सदी की गांधीय दृष्टि एक सामान्य स्वयंसिद्धि नहीं है अत: उसके अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रयोगाधारित आकलन की आवश्यकता है। गांधी विचार की प्रासंगिकता इसी तथ्य में निहित है। सन्दर्भ : 1. गांधी मॉडल ऑव डेवेलपमेण्ट एण्ड वर्ल्ड पीरस, आर.पी. मिश्रा द्वारा सम्पादित, पृ. 1-2, कॉन्सेप्ट पब्लिशिंग हाऊस, 1990 2. वही, पृ.4 3. पर्सपेक्टिव्स ऑव पीस रिसर्च, पृ. 23, 7, 8 व 9 अगस्त, 1972 को अहमदाबाद के पीस रिसर्च सेण्टर गुजरात विद्यापीठ में भारत में शान्ति अनुसंधान के क्षेत्र एवं कॉन्सेप्ट मैथडोलोजी विषय पर आयोजित सेमिनार पर आधारित। पल्बिकेशन - गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद, 1972 4. पीस एड्यूकेशन एण्ड एड्यूकेशन फॉर पीस, देवीप्रसाद, पृ. 14, गांधी पीस फाउण्डेशन, नई दिल्ली, 1984 5. पर्सपेक्टिव ऑव पीस रिसर्च, पृ. 23-24 6. डायमेन्शसन ऑव पीस एण्ड नॉन वॉयलेंस, द गाँधीयन पर्सपेक्टिव, पृ. 15 7. पर्सपेक्टिव ऑव पीस रिसर्च, पृ. 24 8. महात्मा गाँधी, द लास्ट फेज, प्यारेलाल। तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2004 - - 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524618
Book TitleTulsi Prajna 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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