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________________ विशेषताएं आवश्यक बना देती है कि विश्व शान्ति तथा सुरक्षा की रक्षा के लिए दुगने उत्साह से कार्य करें । इस क्षेत्र में गाँधी की यही विशेषता और महत्त्व है कि उन्होंने अहिंसा को केवल सिद्धान्त रूप में ही नहीं, बल्कि साकार रूप में स्थापित किया तथा एक वैज्ञानिक या दार्शनिक की भांति उसका एक विश्लेषणात्मक रूप प्रस्तुत किया। हजारों वर्षों के रक्तपात से ऊबे हुए विश्व को उन्होंने ऐसा मार्ग दिखाने का प्रयास किया जिसके आधार पर बिना शस्त्रों केही अन्याय का विरोध किया जा सकता है। यह पद्धति कठिन अवश्य है किन्तु असम्भव नहीं । इसके सिवा विनाश से बचने का और कोई मार्ग भी नहीं है । हमें विभिन्न परिस्थितियों एवं क्षेत्रों में इसका सफल प्रयोग करने के लिए इसमें कुछ आवश्यक परिवर्तन भी करने होंगे। गाँधीजी स्वयं भी ऐसा किया करते थे । जहाँ तक सामाजिक या राष्ट्रीय प्रश्नों का सम्बन्ध है, वहाँ तक तो इस प्रणाली में कोई विशेष परिवर्तन किए बिना भी सफलता मिल सकती है, क्योंकि इतने क्षेत्र में गाँधीजी स्वयं इसका सफल प्रयोग करके देख चुके थे, अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र प्रयोग करने की समस्या कभी उनके सामने आयी ही नहीं । अतः उसके लिए हमें ही उसे नया रूप देना होगा । वस्तुतः गाँधी के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के बारे में उनके दृष्टिकोण को हमें उनके दर्शन के प्रकाश में ही समझना होगा, क्योंकि उनका दर्शन ही उनके प्रत्येक मूर्तामूर्त कृत्य का निर्देशक है। जहां मोर्गेन्थों व मैकियावली जैसे विचारक कूटनीति को अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की कुंजी मानते हैं, क्योंकि वे मानवीय हितों के मध्य परस्पर व निरन्तर विरोधों की स्थिति को स्वीकारते हैं। अत: उनके अनुसार इस संसार में देश के बढ़ते राष्ट्रीय हित अनिवार्य रूप से दूसरे राष्ट्र के हितों में कमी कर देते हैं और यही अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों के मूल कारण है। वहीं गाँधी ने इसके बिल्कुल विपरीत हितों की एकता की बात कही। सभी को एक ही ईश्वर का अंश मानकर अपने महासागरीय वृत्तों में उन्होंने परस्पर विरोध के स्थान पर हितों में अनुकूलन की बात कही। गाँधी तो इस हद तक एक-दूसरे को जुड़ा हुआ मानते थे कि उन्होंने समाज में अन्य लोगों के हिंसक होने पर स्वयं को भी उस हिंसक कृत्य का भागीदार माना । गाँधी का हितों की एकता का ही दृष्टिकोण उन्हें प्रत्येक सन्दर्भ में दिशा निर्देश देता है । हिंसा से हिंसा के मुकाबले को निर्रथक मानकर उनका दृढ़ विश्वास था कि हिंसा का निराकरण केवल अहिंसा के द्वारा ही प्रभावोत्पादक ढंग से किया जा सकता है । अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंसा के मूल में आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक कारण सम्भव है। गाँधी ने तीनों प्रकार की हिंसाओं को रोकने के उपाय सुझाए हैं। आर्थिक दृष्टि से गाँधी पूंजीवाद को अन्ततः साम्राज्यवाद के रूप में प्रस्तुत करते हैं । गाँधी का यह विचार, लेनिन के इस विचार से कि साम्राज्यवाद पूंजीवाद का उच्चतम चरण है, साम्य रखता है । अतः आवश्यक है कि राष्ट्र तुलसी प्रज्ञा अंक 123 34 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524618
Book TitleTulsi Prajna 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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