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स्वप्न दर्शन के तत्काल बाद महारानी धारिणी के जाग जाने का उल्लेख ज्ञाताधर्मकथा में किया गया है। हाथी का स्वप्न देखने के पश्चात् धारिणी शय्या त्याग, देव-गुरु, सम्बद्ध, प्रशस्त धर्मकथाओं के साथ जागरिका करती है। स्वप्न विज्ञान के अनुसार प्रशस्त स्वप्न दर्शन के पश्चात् सोना वर्जित है, क्योंकि पुनः सोने पर कदाचित अशुभ स्वप्न आ जाए तो पूर्व दृष्ट शुभ स्वप्न का फल प्रतिहत हो जाता है। शुभ स्वप्न दर्शन के पश्चात् मंगलमय चिन्तन पूर्वक समय यापन करने से स्वप्न फल परिपुष्ट होता है।
महारानी धारिणी के स्वप्न-दर्शन के समय के संदर्भ में भी ज्ञाताधर्मकथा में निर्देश किया गया है। मध्य रात्रि के समय उसने स्वप्न देखा। स्वप्न के साथ स्वप्न दर्शन का समय भी अपना महत्त्व रखता है। रात्रि के प्रथम प्रहर में देखा गया स्वप्न वर्षभर में, दूसरे प्रहर का छह माह में, तीसरे प्रहर का तीन माह में, चतुर्थ प्रहर का तत्काल फलदायी होता है।
इस प्रकार ज्ञाताधर्मकथा में स्वप्न पर पर्याप्त मीमांसा उपलब्ध है। स्वप्नों के रहस्यमय संसार का सम्पूर्ण उद्घाटन अवश्य ही अनेक महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों के मार्ग सुझाने वाला
होगा।
सम्पर्क - जैन विश्वभारती लाडनूं - ३४१ ३०६ (राजस्थान)
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तुलसी प्रज्ञा अंक 123
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