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६. केश प्रसाधन
शारीरिक सौन्दर्य की दृष्टि से केशों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। लम्बे, आगे से धुंघराले, काले, पतले एवं कोमल केश अत्यधिक प्रशंसनीय माने गए हैं। अमरकोश कार ने चिकुर, कुंतल, बाल, कच, केश, शिरोरुह, कैशिक, कैश्य, अलक आदि शब्दों को पर्याय के रूप में निर्देश किया है ।।३ बालों को काला, कोमल और स्निग्ध बनाने के लिए अगरु का धूप
और आमलक का उपयोग प्राचीन काल से ही होता था। आगम साहित्य में काले केशों को श्रेष्ठ माना गया है। काले केश समयानुसार सफेद (पलित) हो जाते थे -
किण्हा केसा पलिया भवंति ५४ अगरु, धूप, आमलग, चंदन, वच आदि का केश को सुगंधित एवं सुन्दर बनाने के लिए प्रयोग किया जाता था। ७. विलेपन
यह १९ वीं कला के रूप में ज्ञाताधर्म में निर्देश है। औपपातिक एवं राजप्रश्नीय में भी १९ वीं कला के रूप में इसका निर्देश है।
प्राचीन काल में स्नान के उपरान्त शरीर की सुगन्धी, चमक एवं सौन्दर्यवृद्धि के लिए विलेपन की प्रथा थी। विलेपन में शरीर पर सुगंधित द्रव्यों की लेप की जाती थी। विलेपन स्त्री और पुरुष दोनों वर्गों में समान रूप से प्रचलित था। स्नान के उपरान्त प्रतिदिन स्त्री-पुरुष विलेपन कराते थे। विलेपन के लिए दासदासियां होती थी। प्रतिदिन के अतिरिक्त किसी उत्सव विशेष पर विशिष्ट अंगराग-विलेपन लगाने की प्रथा थी।
विलेपन द्रव्यों में हल्दी, चन्दन, केसर, कस्तूरी, कर्पूर, श्वेत अगरु, गोरोपना आदि का उपयोग किया जाता था। चन्दन और कर्पूर ठण्डे हैं, केसर गर्म है, किन्तु केसर का भी पतला लेप ठंडक देता है। अतिपुत्र (चरक) का निर्देश है –
चन्दनागुरुदिग्धाङ्गो यवगोधूमभोजनः।५ शरीर पर बसन्त ऋतु में चन्दन और अगरु को मिलाकर विलेपन किया जाता है आर जौ-गेहूं का भोजन काम्य होता है। ग्रीष्म में केवल चन्दन तथा हेमन्त में केवल अगरु का लेप करने का निर्देश है - भजेच्चन्दनदिग्धाङ्गः, आलिंग्यागुरुदिग्धाङ्गीम्।
हरीचन्दन और गोपीचन्दन का लेप की हुई स्त्रियां यदि मन के अनुकूल हों तो प्यास, दाह और मूर्छा को नष्ट करती हैं। कालिास के कुमारसंभव में सखियां पार्वती के शरीर पर सुन्दर एवं सुगंधित द्रव्यों का लेप करती है -
विन्यस्तशुक्लागुरु चक्रुरङ्गं एवं गोरोचना पत्रविभक्तमस्याः। सा चक्रवाकाङ्कितसैकतायास्त्रिस्रोतसः कान्तिमतीत्य तस्थौ॥५६
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तुलसी प्रज्ञा अंक 123
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