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प्रगट होने वाली रासायनिक क्रिया है जबकि उष्मा ऊर्जा का एक रूप है जो पदार्थ स्थित अणु-गुच्छों की गति की तीव्रता-मंदता के अनुपात में पदार्थ से विकरित होती है। उष्मा विकिरण (Thermal radiations) की उत्पत्ति
उष्मीय विकिरणों अथवा उष्मा की विकिरणें सभी पदार्थों द्वारा उत्सर्जित होती रहती हैं। इसी के माध्यम से हमें पदार्थ की उष्मा का अनुभव होता है। तापमान या उष्णतामान (temperature) का गुण सभी पदार्थों में सदा विद्यमान रहता है। सभी पदार्थ शून्य डिग्री निरपेक्ष (zero degree absolute) तापमान से अधिक तापमान वाले होते हैं। शून्य डिग्री निरपेक्ष से ऊपर ज्यों-ज्यों पदार्थ का तापमान बढ़ेगा त्यों-त्यों उसके उष्मीय विकिरणों का उत्सर्जन बढ़ेगा। यह उत्सर्जन जिस ऊर्जा के रूप में होता है, उसे उष्मा-ऊर्जा (thermal energy) कहते हैं । उष्मा-ऊर्जा का उत्सर्जन दो बातों पर निर्भर है
1. पदार्थ का तापमान 2. पदार्थ की सतह का स्वभाव।
पदार्थ से निकलने वाली उष्मा-विकिरणों की तरंगें भी विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के रूप में ही होती हैं, ठीक वैसी ही जैसी प्रकाश की तरंगें होती हैं। किन्तु इनकी तरंग-लंबाई (wave-length) "इन्फ्रारेड" तरंगों की कोटि में होने से आंखों द्वारा दिखाई नहीं देती है। ये तरंग लंबाई 8 x 107 से लेकर 4 x 10 मीटर के बीच हैं जबकि दृश्य प्रकाश की तरंगलम्बाई 4 x 10-7 से 8 x 10-7 तक है। इनके कुछ विशेष लक्षण इस प्रकार हैं
1. ये सदा समरेखा में प्रकाश की गति (वेग) से प्रसारित होती हैं। 2. इन्हें माध्यम की अपेक्षा नहीं है, ये शून्यावकाश (vacuum) में भी प्रसारित हो
सकती है। 3. ये जिस माध्यम से गुजरती हैं, उसे गरम नहीं करती। 4. मूल स्रोत से दूरी के बढ़ने पर इनकी तीव्रता घटती जाती है। 5. प्रकाश-तरंगों की भांति इनका परावर्तन आदि होता है। 6. प्रकाश तरंगों की तुलना में इनकी ऊर्जा कम होती है।
स्टिफन-बोल्ट्झमेन नियम के अनुसार उष्मा-विकिरण की मात्रा का निर्धारण होता है। 03
__इस सिद्धान्त से यह स्पष्ट होता है कि जैसे जैन दर्शन "आतप" को पौद्गलिक परिणमन मानता है, वैसे विज्ञान के अनुसार भी "उष्मा-विकिरण' भी केवल भौतिक ऊर्जा या द्रव्य है। जैसे प्रकाश केवल पौद्गलिक परिणमन है तथा केवल भौतिक ऊर्जा या द्रव्य है, वैसे ही उष्मा विकिरण भी अचित्त या निर्जीव ही है। सभी पदार्थों से ये विकिरण सतत तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2003 -
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