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________________ सन्दर्भ-सूची : 1. भगवई, विआहपण्णत्ती (खण्ड-1), संपादक-भाष्यकार-आचार्य महाप्रज्ञ, भूमिका, पृ. 16, प्रका. जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय), लाडनूँ-1994 2. तुलनीय, आगमयुग का जैन दर्शन, पं. दलसुखभाई मालवणिया, पृ. 115-116 9. तित्थयरवयणसंगह-विसेसपत्थारमूलवागरणी। दव्वट्ठिओ य पज्जवणओ य सेसा वियप्पा सिं॥ --सन्मति-प्रकरण, प्रथम काण्ड, गाथा-3, पृ. 2 10. से किं तं णए ? सत्त मूलणया पणत्ता। तं जहा णेगमे संगहे ववहारे उज्जुसुए सद्दे समभिरूढ़े एवंभूते । - अणुओगदाराइं-सम्पादक आचार्य महाप्रज्ञ, तेरहवां प्रकरण, सूत्र 715, पृ. 376, प्रका. जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं, प्रसं. 1996 11. जावइया वयणवहा तावइया चेव होंति णयवाया। ____जावइया णयवाया तावइया चेव परसमया॥ – सन्मति प्रकरण-तृतीय काण्ड, गाथा-47, पृ. 89 12. से केणटेणं भंते, एवं वुच्चइ नेरतिया सिय सासया, सिय असासया? गोयमा, अव्वोच्छित्तिणयट्ठयाए सासया, वोच्छित्तिणयट्ठयाए, असासया। से तेणटेणं जाव सिया असासया। --- भगवती (द्वितीय खण्ड) सातवां शतक उद्देशक-3, पृ. 146 13. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चई जाव भविए वि अहं? सोमिला ! दव्वट्ठयाए एगे अहं, नाण-दसणट्ठयाए दुविहे अहं, पएसट्ठायाए अक्खए वि अहं, अव्वए वि अहं, अवट्ठिए वि अहं, उवयोगट्ठयाए अणेगभूयभावभविए वि अहं । से तेणद्वेणं जाव भविए वि अहं। - भगवती (तृतीय खण्ड), अठारहवां शतक, उद्देशक-10, पृ. 750 14. आगम युग का जैनदर्शन, पृ. 118 15. एतस्सणं भंते, धम्मत्थिकायस्स दव्वट्ठ-पदेसट्ठताए कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा, सव्वत्थोवे एणे धम्मत्थिकाए दव्वट्ठताए, से चेव पदेसट्ठताए असंखेजगुणे। – प्रज्ञापना सूत्र, भाग-1, तृतीय बहुवक्तव्यपद, इक्कीसवां अस्तिकायद्वार, सूत्र 272 (1), पृ. 100, सम्पादक-मुनि पुण्यविजय, जैन आगम ग्रन्थ माला, ग्रन्थांक 9, प्रका. श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई-26, प्रथम संस्करण-1969 16. एएसि णं भंते । धम्मत्थिकाय-अधम्मत्थिकाय जाव अद्धासमयाणं दव्वट्ठयाए? एएसिं अप्पाबहुगं जहा बहुवत्तव्वयाए तहेव निवसेस। - भगवती, चतुर्थखण्ड, शतक-25, उद्देशक-4, पृ. 329 17. गोयमा। धम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकाए ए एते णं दोण्णि वि तुल्ला पदसेट्ठताए असंखेज्जगुणा, जीवत्थिकाए दव्वट्ठयाए अणंतुगणे, से चेव पदेसद्वताए असंखेजगुणे, पोग्गलत्थिकाए दव्वट्ठयाए अणंतगुणे, से चेव पदेसट्ठयाए असंखेजगुणे, अद्धासमए दव्वट्ठ-पदेसट्ठयाए अणंतगुणे आगासत्थिकाए-पएसट्ठयाए अणंतगुणे। – प्रज्ञापना, वही, सूत्र-273, पृ. 101 तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर --दिसम्बर, 20030 - 9 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524617
Book TitleTulsi Prajna 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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