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पर्दे के उस ओर
मैं ढूंढ़ रहा था भगवान् को, भगवान् ढंढ़ रहे थे मुझे। अकस्मात् हम दोनों मिल गए। न तो वे झुके और न मैं भी झुका।
वे मुझसे बड़े नहीं थे, मैं उनसे छोटा नहीं था।
पर्दा मुझे उनसे विभक्त किए हुए था। वह हटा और मैं भगवान् हो गया।
- आचार्य महाप्रज्ञ
__ तुलसी प्रज्ञा अंक 120-121
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