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________________ न केवल स्वयं के जीवन को सन्तुष्ट करें बल्कि समाज के विकास के लिए भी उपयोगी योगदान करें। ऐसे व्यक्ति बहुप्रतिभा सम्पन्न हों। बौद्धिक रूप से जागृत, शरीर से मजबूत, नैतिकता से ऊँचे, संवेदनशील, समाज के प्रति उत्तरदायी तथा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर व्यक्तियों का निर्माण इस समन्वित शिक्षा से ही संभव हो सकेगा। उच्च शिक्षा की चुनौतियाँ __ आज हम आने वाले समय के लिए शिक्षा दे रहे हैं। आज शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्र भावी समाज में उत्तरदायित्व के स्थान ग्रहण करेंगे। आने वाले कल के समाज की सामाजिक, सांस्कृतिक आवश्यकताओं के प्रति शिक्षा व्यवस्थाओं की क्या प्रतिक्रिया होगी, इस पर गहन चिंतन आवश्यक है। शिक्षा केवल सामाजिक परिवर्तन का अनुसरण नहीं करती बल्कि भावी समाज परिवर्तन के लिए विचार भी देती है। बदलते वैशविक परिप्रेक्ष्य में उच्च शिक्षा के समक्ष कई चुनौतियाँ हैं। प्रतिस्पर्धात्मक, मुक्त एवं बदलते वैशविक परिप्रेक्ष्य में भारत को भी आगामी कुछ वर्षों में विश्व अर्थ व्यवस्था से पूर्णरूपेण जुड़ने के लिए तैयार होना होगा। अस्तित्व तथा विकास के लिए आवश्यक मानव शक्ति को उच्चस्तरीय कौशल एवं वैज्ञानिक मनोभाव की आवश्यकता है ताकि हमारी प्रौद्योगिकी एवं उत्पादन अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो सके। ऐसी जटिल स्थिति में उच्च शिक्षा के समक्ष निम्नांकित चुनौतियाँ सिर उठाये खड़ी हैं - 1. आने वाली व्यवस्था में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक प्रविधियों और समाज के राजनीतिक निकाय की रक्षा के लिए हमें प्रतिभावान वैज्ञानिकों, व्यावसायिक विशेषज्ञों, प्रशासकों, संयोजकों, प्रबंधकों की बड़ी संख्या में अपेक्षा होगी और अनुसंधान तथा विकास को बल देने के लिए सक्षम एवं उच्च गुणवत्ता वाली मानव संसाधन की माँग को पूरा करना होगा। अपर्याप्त संसाधन की स्थितियों का सामना करने के लिए वर्तमान संसाधनों का उचित उपयोग, अतिरिक्त संसाधन जुटाना, सुविधाओं में भागीदारी, कठोर श्रम आदि कदम उठाने होंगे। अतिरिक्त संसाधनों तथा इस हेतु किये जाने वाले प्रयत्नों को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रमों तथा शैक्षिक पर्यावरण में सुधार के साथ उच्च शिक्षा संस्थानों की मूलभूत सुविधाओं का विकास आवश्यक होगा। औद्योगिक संगठनों, राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, राष्ट्रीय अकादमी तथा अन्य व्यावसायिक संगठनों में और अधिक अन्तक्रियाओं की अपेक्षा होगी जिससे उत्कृष्टता का लाभ सभी को मिल सके। 4. शिक्षा की राष्ट्रीय योजना (1992) के क्रियान्वयन की दृष्टि से राष्ट्रीय विकास 26 - - तुलसी प्रज्ञा अंक. 120-121 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524615
Book TitleTulsi Prajna 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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