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________________ रोका नहीं जा सकता लेकिन गुणवत्ता से हटना भी ठीक नहीं है। वस्तुतः गुणात्मक उच्च शिक्षा के इच्छुक एवं योग्य छात्र तथा संख्यात्मक आदर्श के रक्षक समाज व राजनीतिज्ञ सभी एक ही लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सीमित रह जाते हैं और वह लक्ष्य है विश्वविद्यालय की उपाधि प्राप्त करना। इस समस्या का निदान भी अपेक्षित है। उच्च शिक्षा एवं रोजगार शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ते दबाव के कारण स्वतंत्रता पश्चात् इस क्षेत्र की आवश्यकताएँ बढ़ी हैं। पिछले कुछ समय से देश की मानव संसाधन की आवश्यकता तथा शिक्षा की उत्पादकता के बीच दूरी पाटने के प्रयास हुए हैं। विकसित राष्ट्रों में मानव संसाधन की आवश्यकता तथा उसकी पूर्ति के लिए संख्या तथा गुणात्मक दोनों ही के लिए योजनाकर्ताओं ने जो प्रयत्न किये हैं, उन्हें प्रचलित मूल्य व्यवस्था तथा भारतीय सामाजिक परम्पराओं द्वारा नकारा गया है। परिणामतः शैक्षिक अवसरों व रोजगार अवसरों के बीच असमानता बढ़ी है। बेरोजगारी की बढ़ती संख्या में 20 प्रतिशत स्नातक व स्नातकोत्तर हैं। देश में उच्चशिक्षा संस्थानों में निरन्तर ऐसे वृद्धि हो रही है, मानो देश की आवश्यकता और आपूर्ति के स्वरूप की समस्या अस्तित्व में ही न हो। आवश्यकता एक ऐसी कार्य योजना की है, जिससे देश की आवश्यकता और उच्च शिक्षा की उत्पादकता के बीच असमानता पाटी जा सके। एक तरफ समकालीन समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मानवसंसाधन विकसित करने के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों को विशेष प्रयत्न और कार्यक्रमों की अपेक्षा है, दूसरी तरफ निजी व सार्वजनिक क्षेत्रों में परम्परागत और आधुनिक रोजगार के अवसरों के बढ़ाने के तंत्र की आवश्यकता भी है। मानवशक्ति की आवश्यकता के अनुरूप आपूर्ति की समस्या महत्त्वपूर्ण है, फिर भी हमें यह नहीं भूल जाना चाहिए कि उच्च शिक्षा संस्थान मानवशक्ति के आपूर्तिकर्ता मात्र नहीं हो सकते। आपूर्ति मात्र के लिए प्रयत्न अत्यंत विनाशकारी होंगे। हम ज्ञान की तलाश तथा विवेक जागरण के प्रश्न को भूला नहीं सकते। ज्ञान को कौशल के लिए तथा कौशल को मात्र सूचनाओं के संग्रहण के लिए नहीं छोड़ सकते। यद्यपि उच्च शिक्षा संस्थानों एवं रोजगार के क्षेत्रों के बीच अन्तक्रियाएँ स्वाभाविक हैं, क्योंकि यही अन्तक्रियाएँ शिक्षा द्वारा प्रदत्त कौशल और नियोक्ताओं की आवश्यकता के बीच की दूरी को कम करेंगी। उच्च शिक्षा के संकायों का विभाजन भी रोजगार और आपूर्ति के बीच दूरी को बढ़ाता है। उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों में 80 प्रतिशत स्नातक हैं तथा 20 प्रतिशत स्नातकोत्तर हैं। इन 20 प्रतिशत में से 42 प्रतिशत समाजविज्ञान एवं मानविकी के हैं तथा 21 प्रतिशत वाणिज्य के हैं। 20 प्रतिशत प्राकृतिक विज्ञानों तथा 14 प्रतिशत इंजीनियरिंग, आयुर्विज्ञान एवं कानून के छात्र 24 - तुलसी प्रज्ञा अंक 120-121 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524615
Book TitleTulsi Prajna 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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