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________________ कलानां प्रवरं चित्रं धर्मकामार्थमोक्षदम्। मांगल्यं परमं चैतद् गृहे प्रतिष्ठितम्॥ यथा सुमेरुः प्रवरो नगानां यथाण्डजानां गरुडः प्रधानः। यथा नराणां प्रवर: क्षितीशस्तथा कलानामिह चित्रकल्पः॥ अर्थात् सभी कलाओं में श्रेष्ठ चित्रकला है, यह चारों पुरुषार्थों -- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है। जिसके घर में चित्र होता है, उसके घर में परम मंगल की प्रतिष्ठा होती है। जैसे पर्वतों में सुमेरू, पक्षियों में गरुड़, मनुष्यों में राजा श्रेष्ठ होता है, वैसे ही कलाओं में चित्रकला श्रेष्ठ है। चित्र की महनीयता को चित्रसूत्रकार ने स्पष्ट रूप से अंकित किया है शास्त्रज्ञैः सुकृतैर्दक्षैश्चित्रं हि मनुजाधिप। श्रियमावहति क्षिप्रमलक्ष्मी चापकर्षति॥ निर्णजयति चोत्कण्ठां निरुणद्वयागत शुभम्। शुद्धां प्रथयति प्रीतिं जनयत्यतुलामपि॥ दुःस्वप्नदर्शनं हन्ति प्रीणाति गृहदेवताम्। न च शून्यमिवाभाति यत्र चित्रं प्रतिष्ठितम्॥' अर्थात् शास्त्र के ज्ञाता, पुण्यात्मा तथा चतुर पुरुषों द्वारा बनाया हुआ चित्र लक्ष्मी प्रदान करता है, क्योंकि वह चित्र उचित मान-परिमाण से बना शुभ लक्षण युक्त होता है। वह दरिद्रता को दूर करता है, मनोरथ पूर्ण करता है, मिले हुए कल्याण को स्थिर करता है, पवित्र तथा अनुपम कीर्ति उत्पन्न कर विख्यात करता है, दुःस्वप्न का नाश करता है, गृह देवता को प्रसन्न करता है और जिस घर में चित्र बना रहता है, वह शून्य की तरह नहीं मालूम होता है अर्थात् वह सदा भरा-पूरा प्रतीत होता है। चित्र के माध्यम प्राचीन काल में भारतीय चित्रकला में अनेक प्रकार के फलक प्रयोग में लाए जाते थे, जैसे भित्ति, वस्त्र, लकड़ी, तालपत्र, पत्थर, हाथीदांत, चमड़ा, कागज आदि। प्रमुखतः तीन प्रकार के माध्यमों पर चित्रकारी की जाती थी-1. भित्ति चित्र, 2. चित्रफलक या फलक चित्र, 3. पट चित्र। 1.भित्ति चित्र-भित्ति चित्र का तात्पर्य दिवारों पर बनाए गए चित्रों से है। प्राचीन भारतीय भित्तिचित्रों की समृद्ध परम्परा आज भी देखने को मिलती है। प्रागैतिहासिक मानवों में गुफा-कन्दराओं की भित्तियों को अपने चित्रों का आधार बनाया था। बाद में पहाड़ों को 14 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 120-121 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524615
Book TitleTulsi Prajna 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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