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________________ दिगम्बर ग्रंथ षट्खंडागम के अनुसार सदृश क्रमांक गुणांक विसदृश नहीं नहीं नहीं जघन्य + जघन्य जघन्य + एकाधिक नहीं जघन्येतर + समजघन्येतर जघन्येतर + एकाधिक जघन्येतर नहीं जघन्येतर + व्यधिक जघन्येतर है जघन्येतर + त्र्यादिअधिक जघन्येतर नहीं तत्त्वार्थसूत्र के अनुसारगुणांक सदृश क्रमांक विसदृश - लं पं . जघन्य + जघन्य नहीं नहीं जघन्य + एकाधिक नहीं जघन्येतर + समजघन्येतर जघन्येतर + एकाधिक जघन्येतर नहीं जघन्येतर + व्यधिक जघन्येतर है जघन्येतर + त्र्यादिअधिक जघन्येतर नहीं भाजन-प्रत्ययिक बंध सादि विस्रसा बंध का यह द्वितीय प्रकार है। भाजन का अर्थ है- आधार । 100 किसी भाजन में रखी हुई वस्तु का स्वरूप दीर्घकाल में बदल जाता है, वह भाजन प्रत्ययिक बंध है। जैसे पुरानी मदिरा अपने तरल रूप को छोड़कर गाढ़ी बन जाती है। पुराना गुड़ और पुराने तंदुल पिण्डीभूत हो जाते हैं । 101 इस प्रकार के बंध को भाजन बन्ध कहा जाता है। परिणाम प्रत्ययिक बंध ___ यह सादि विस्रसा बंध का तीसरा प्रकार है। परिणाम का अर्थ है – रूपान्तरगमन।102 परमाणु स्कन्धों का बादल आदि अनेक रूपों में परिणमन होता है, वह परिणाम-प्रत्ययिक बंध है। 14 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 119 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524614
Book TitleTulsi Prajna 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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