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________________ ज्योतिष-विद्या को जैनाचार्यों का अवदान - मनोज कुमार श्रीमाल सृष्टि का आद्योपान्त कारण परमाणु है। मनुष्य का शरीर असंख्य परमाणुओं का सम्मिलित स्वरूप है, अतः सौरमण्डल में भ्रमण करने वाले सूर्यचन्द्रादि ग्रहों की गतिविधियों का प्रभाव अन्योन्याश्रय सम्बन्ध होने के कारण मानव शरीर स्थित सौर जगत् पर भी पड़ता है। फलस्वरूप पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणियों पर आकाश में भ्रमण करने वाले ग्रहों का पूर्ण रूपेण प्रभाव पड़ता है। सहस्रों वर्ष पूर्व भारतीय विद्वानों ने अपनी सूक्ष्म प्रज्ञा द्वारा शरीरस्थ सौरमण्डल का भली-भांति पर्यवेक्षण करके तदनुरूप आकाशीय सौरमण्डल की व्यवस्था की थी। साथ ही आकाशीय ग्रहों के मानव-शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अन्वेषण किया था। इसी विद्या को ज्योतिष विद्या के नाम से अभिहित किया गया। इस विद्या के विभिन्न अंगों को विकसित करने में अनेक विद्वानों ने अपना योगदान दिया। __ भारतीय विज्ञान की उन्नति में जैनधर्मानुयायी आचार्यों ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। जैन धर्म अपना गौरवपूर्ण इतिहास रखता है तथा इसके विपुल साहित्य का भी अपना ही महत्त्व है। इसके आगमिक साहित्य में आध्यात्मिक एवं दार्शनिक तत्त्वों के साथ-साथ वैज्ञानिक तथ्य भी समाविष्ट हैं। ज्योतिष शास्त्र का आलोड़न करने पर ज्ञात होता है कि जैनाचार्यों द्वारा निर्मित ज्योतिष ग्रन्थों से भारतीय ज्योतिष में अनेक नवीन तथ्यों का समावेश तथा प्राचीन सिद्धान्तों में परिमार्जन हुआ है। भारतीय परम्परानुकूल जैन धार्मिक ग्रन्थों में एतद् विषयक सामग्री प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। जैन मुनियों द्वारा शिक्षा के चौदह आवश्यक अंगों में सांख्यान (अंकगणित) एवं ज्योतिष को प्रमुख स्थान दिया है तथा 72 विज्ञानों एवं कलाओं में ज्योतिष को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है। परवर्ती जैन मुनियों द्वारा ज्योतिष पर स्वतंत्र ग्रन्थों की रचना की गयी है, पर विद्वानों का ध्यान इस ओर आकृष्ट नहीं हो सका, जितना कि उनके आगमिक साहित्य की ओर। फलस्वरूप कुछ ग्रन्थ तो कालकवलित हो गये और कुछ बच पाये तो वे - तुलसी प्रज्ञा अंक 118 92 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524613
Book TitleTulsi Prajna 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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