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________________ आचार्य महाप्रज्ञ के साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण निष्पत्ति है-दृष्टि-परिवर्तन। हमारे मानस में कुछ मिथ्या धारणाएं जड़ जमाये रहती हैं। विचार करने पर पता चलता है कि हमारी वे धारणाएं भ्रान्त थीं। जब तक उन मिथ्या धरणाओं का निराकरण न हो और सम्यक् धारणा उनका स्थान न ले ले, तब तक वे मिथ्या धारणाएं ही हमारे जीवन को संचालित करती रहती हैं। परिणाम होता है-कुण्ठा, संत्रास और विरसता। जब सम्यक् धारणाएं मिथ्या धारणाओं के स्थान पर आती हैं तो जीवन की दिशा भी बदल जाती है और परिणाम होता हैप्रफुल्लता, अभय और सरसता । आचार्य महाप्रज्ञ के साहित्य का अनुशीलन करने से जो मुख्य दृष्टि-परिवर्तन हमारे सम्मुख आये, उनका संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है। पाठकों की सुविधा के लिए हम इस विवरण को विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत दो कॉलम में विभक्त करके दे रहे हैं। प्रथम कॉलम में वे धारणायें हैं जो सामान्यतः प्रचलित रहती हैं और द्वितीय कॉलम में वे धारणाएं हैं जो आचार्य महाप्रज्ञ का साहित्य पढ़ने के अनन्तर बनती हैं भाव-भूमि प्रचलित अवधारणा सम्यक् अवधारणा १. सत्य उतना ही है जितना इन्द्रियों से १. कुछ सत्य ऐसे भी हैं, और वे अधिक प्रतीति में आता है। ___महत्त्वपूर्ण हैं-जो इन्द्रियातीत हैं। २. हम जो जानते हैं वही मानते हैं। २. कभी-कभी हम जानते कुछ और हैं और ___मानते कुछ और हैं। ३. हम जो सोचते हैं वही करते हैं। ३. कभी-कभी हम सोचते कुछ और हैं तथा करते कुछ और हैं। ४. संसार के काम बिना बेईमानी के सिद्ध ४. अन्ततोगत्वा बेईमानी से होने वाले लाभ नहीं होते। की अपेक्षा बेईमानी से होने वाली हानि कई गुणा अधिक होती है। ५ मोक्ष की साधना कुछ गिने-चने लोगों ५. मोक्ष हम सबका जन्मसिद्ध अधिकार है। के लिए है। ६. धर्म उनके लिए है जिन्होंने संसार छोड़ ६. धर्म संसारी पुरुषों के लिए भी आवश्यक दिया है। ७. अध्यात्म एक हवाई चीज है, ठोस है ७. अध्यात्म के बिना समाज-सेवा बिना जड़ समाज-सेवा। की बेल है। ८. हम सामान्य व्यक्ति हैं, सन्त नहीं। हमारा ८. क्रोध, मान, माया और लोभ भले कितने कार्य क्रोध, मान, माया और लोभ के भी आवश्यक लगे, किंतु वे सत्य को बिना नहीं चल सकता। ढकते ही हैं। 4 - तुलसी प्रज्ञा अंक 118 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524613
Book TitleTulsi Prajna 2002 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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