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एक साथ उदय में नहीं आ सकती। जैसे यदि सुस्वर नाम कर्म का उदय है तो उस समय दुःस्वर नाम कर्म का उदय नहीं हो सकता है। यदि अनादेय नाम कर्म का उदय है तो व्यक्ति का वचन युक्तिपूर्ण तथा सुन्दर होते हुए भी वह मनोज्ञ नहीं होगा, क्योंकि उस समय आदेय नाम कर्म का उदय नहीं है।
__ शरीर विज्ञान की दृष्टि से शरीर संरचना में सहायक जीव भी एक युगल के रूप में साथसाथ कार्य करते हैं तब शरीर का विकास होता है। जो जीव अपने-अपने अनुरूप गुण पैदा करता है उसे प्रभावी जीन कहते हैं और जो जीव कुछ नहीं करता उसे अप्रभावी जीव कहते हैं।
ग्रंथि तंत्र के अनुसार शरीर में स्थित अनेक प्रकार की ग्रंथियां विभिन्न रसायन पैदा करती हैं जिन्हें हार्मोन्स कहते हैं। ये हार्मोन्स शारीरिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। जिन ग्रंथियों का स्राव न तो सीधा किसी अंग में गिरता है और न ही उनमें से किसी प्रकार की नलिकाएं निकलती हैं, उन ग्रंथियों का स्राव सीधा रक्त में प्रवाहित होता है। ऐसी ग्रंथियों को अन्तःस्रावी ग्रंथितंत्र कहते हैं। इन ग्रंथियों से निकलने वाले स्रावों का विभिन्न अंगों पर भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ता है।
कुछ व्यक्ति बहुत अधिक शक्तिशाली, बलवान और सुगठित शरीर वाले होते हैं। उनके शरीर की अस्थियां आदि बहुत ही सुदृढ़ और मजबूत होती हैं। प्रश्न उभरता है कि इन सबका कारण क्या है?
संहनन नाम कर्म के उदय से शरीर में अनेक प्रकार की हड्डियों का निर्माण होता है। इनमें कुछ टेढ़ी-मेढ़ी, कुछ एक दूसरे से जुड़ी हुई कई प्रकार की होती हैं।
शरीर विज्ञान के अनुसार मानव शरीर में भी अलग-अलग प्रकार की अस्थियों का निर्माण होता है। जैसे-लम्बी अस्थियां, क्रमहीन, चपटी, छोटी तथा स्नायुजात। पेराथाइराइड ग्रंथि शरीर के संतुलन को बनाए रखती है। इस ग्रंथि के अभाव में खून में कैलशियम कम होने लगता है जो कि हड्डियों को मजबूत बनाए रखता है। इसके हार्मोन्स की अधिकता होने पर ब्लड तथा कैल्शियम की कमी होने पर हड्डियां कमजोर होती जाती हैं । इससे व्यक्ति का शरीर शिथिल पड़ जाता है तथा भद्दा दिखाई देने लगता है।
हड्डियों से तो हमारे शरीर का मात्र ढांचा तैयार होता है। जब तक मांसपेशीय संरचना सुव्यवस्थित नहीं होती तब तक शरीर सुडौल और सुगठित नहीं लगता। मांसपेशीय संरचना को स्वस्थ तथा शक्तिशाली बनाने में एड्रिनल ग्रंथि योगभूत बनती है। इस ग्रंथि से होने वाले स्राव एड्रिनेलिन कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त परानुकम्पी नाड़ी संस्थान भी शरीर में शक्ति का संचय करता है तथा शरीर के विभिन्न भागों को पुष्ट बनाता है। इस प्रकार शरीर को आकार देने वाली अस्थि संरचना की तुलना हम संहनन नाम कर्म के साथ कर सकते हैं।'
प्रायः देखा जाता है कि एक ही गर्भ से उत्पन्न संतान एक गोरी होती है तो दूसरी काली। कुछ जाति विशेष के लोग गोरे होते हैं तो कुछ जाति विशेष के लोग काले और यह
तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2002 :
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