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उत्तर.१/४५ 8. उत्तर. २/४
संस्कृत धातुकोष पृ. ३६ 10. उत्तर. २/१८ 11. आवश्यक नियुक्ति, गाथा ४८२ : लाठेसु अ उवसग्गा, घोरा.........। ततो भगवान् लाढासु जनपदे
गतः तत्र घोरा उपसर्गा अभवन्। 12. बृहद्वृत्ति, पत्र ४१४ : 'लाढे' त्ति सदनुष्ठानतया प्रधानः। 13. उत्तर. ३/१२ 14. उत्तर.४/६ 15. उत्तर. ६/१५ 16. उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ. १५६ : यथासौ पक्षी तं पत्रभारं समादाय गच्छति एवमुपकरणं भिक्षुरादाय
णिरवेक्खी परिव्वए। 17. उत्तर.९/९ 18. उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ. १८२ : बहूणं दुप्पयचउप्पदपक्खीणं च 19. उत्तर. १०/२८ 20. निशीथ पीठिका भाष्य चूर्णि, पृ. ४९५ 21. उत्तर.11/15-30 22. उत्तर. १४/७ 23. उत्तर. १४/२२ 24. बृहद्वृत्ति, पत्र ४०० 25. उत्तर. १४/२९ 26. उत्तर. १८/५० 27. बृहद्वृत्ति, पत्र ४४७ : 'शिरं' ति शिर इव शिरः सर्वजगदुपरिवर्तितया मोक्षः। 28. उत्तर. १९/३३ 29. बृहद्वृत्ति, पत्र ४५६/४५७ 30. उत्तर.१९-१७ 31. उत्तर. २२/७ 32. उत्तर. २३/५५ 33. उत्तर. २३/७६ 34. उत्तर. २७/१५ 35. बृहद्वृत्ति, पत्र ५५३ 36. उत्तर. २९, सूत्र १५ 37. उत्तर. ३२/५० 38. उत्तर. ३२/१०४
सम्पर्क सूत्र- जैन विश्व भारती
__ लाडनूं (राजस्थान)
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तुलसी प्रज्ञा अंक 118
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