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जिस प्रकार किम्पाक फल खाने का परिणाम सुन्दर नहीं होता उसी प्रकार भोगे हुए भोगों का परिणाम भी सुन्दर नहीं होता।
प्रतीक का संदेश है कि किंपाकफल देखने में बहुत सुन्दर और खाने में अति स्वादिष्ट होता है। किन्तु उसको खाने का परिणाम प्राणान्त है। वैसे ही भोग भोगते समय सुखानुभूति होती है पर उसका परिणाम सुन्दर नहीं होता।
___ परिणाम-अभद्रता का प्रतीक किंपाकफल भोग सेवन के दुःखद परिणाम का निर्देश करता है। विजुसोयामणिप्पभा (विधुत्सौदामिनीप्रभा)
क्षणिकता, स्फूर्ति, त्वरिता, दीप्ति, ओज आदि जीवन-तत्त्वों का अंत:करण में एक साथ संचार करने वाले प्रतीक का प्रयोग उत्तराध्ययन में राजीमती की शारीरिक कांति, दीप्ति द्योतित करने के प्रसंग में हुआ है
अह सा रायवरकन्ना सुसीला चारुपेहिणी।
सव्वलक्खणसंपुन्ना विजुसोयामणिप्पभा॥1 वह राजकन्या सुशील चारुप्रेक्षिणी, स्त्री-जनोचित सर्व-लक्षणों से परिपूर्ण और चमकती हुई बिजली जैसी प्रभा वाली थी।
सर्वलक्षण-युक्त राजीमती के शारीरिक सौन्दर्य की अभिव्यक्ति के लिए 'विद्युत्' प्रतीक के रूप में उपन्यस्त किया गया है। दुट्ठस्सो (दुष्टाश्वः) दुष्ट-अश्व को मन का प्रतीक बनाकर कवि कहते हैं
अयं साहसिओ भीमो दुट्ठस्सो परिधावई।
जंसि गोयम। आरूढो कहं तेण न हीरसि? ॥32 यह साहसिक, भयंकर, दुष्ट-अश्व दौड़ रहा है। गौतम! तुम उस पर चढ़े हुए हो। वह तुम्हें उन्मार्ग में कैसे नहीं ले जाता?
इस प्रतीक से कवि कहना चाहते हैं कि मन रूपी अश्व को श्रुत रूपी लगाम से बांधकर सन्मार्गगामी बनाओ। भाणू (भानूः)
___ 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' अंधकार से प्रकार की ओर ले चल। यह प्रकाश अस्मिता व सर्वज्ञता का है। मोक्ष का मार्ग तपोमयी साधना की अपेक्षा रखता है। जिसका संसार क्षीण हो चुका है, जो सर्वज्ञ है, तप के तेज से दीप्त है, उस देदीप्यमान ज्योति-पुंज को बिम्बायित करने में भाणू' प्रतीक सटीक और सक्षम है
उग्गओ विमलो भाणू सव्वलोगप्पभंकरो। सो करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोगंमि पाणिणं॥3 तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2002 -
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