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________________ अपभ्रंश भाषा और साहित्य का संक्षिप्त इतिहास --जैन साध्वी डॉ. मधुबाला 1. लगभग छट्ठी शताब्दी से अठारहवीं शताब्दी तक का इतिहास अपभ्रंश भाषा का समय भाषा विज्ञान के आचार्यों ने 500 ई. से 1000 ई. तक बताया है किन्तु इसका साहित्य हमें लगभग 8वीं सदी से मिलना प्रारंभ होता है। प्राप्त अपभ्रंश साहित्य में स्वयंभू सबसे पूर्व हमारे सामने आते हैं। अपभ्रंश साहित्य का समृद्ध युग 9वीं से 13वीं शताब्दी तक है। इसी काल में पुष्पदन्त, धवल, धनपाल, नयनन्दि, कनकामर, धाहिल इत्यादि अनेक प्रतिभाशाली कवि हुए हैं। इनमें से यदि पुष्पदन्त को अपभ्रंश-साहित्य का सर्वश्रेष्ठ कवि कहा जाये तो कोई अत्युक्ति न होगी। पुष्पदन्त की प्रतिभा का मूल्य इसी बात से आँका जा सकता है कि इनको अपने महापुराण में एक ही विषय 'स्वप्न दर्शन' को चौबीस बार अंकित करना पड़ा। प्रत्येक तीर्थंकर की माता जन्म सम्बन्धी स्वप्न में अनेक पदार्थ देखती हैं, इसका वर्णन आवश्यक था। इसी से पुष्पदन्त को स्वप्न का चौबीस बार वर्णन करना पड़ा किन्तु फिर भी एक-आध स्थल को छोड़कर सर्वत्र नवीन छन्दों और नवीन पदावलियों की योजना मिलती है और कहीं पिष्ठपेषण नहीं प्रतीत होता। पुष्पदन्त के बाद के कवियों ने इनका आदरपूर्वक स्मरण किया है। जैनों द्वारा लिखे गये महापुराण, पुराण, चरिउ आदि ग्रंथों में बौद्ध सन्तों द्वारा लिखे गये स्वतंत्र पदों, गीतों और दोहों में, कुमार पाल प्रतिबोध, विक्रमोवंशीय, प्रबन्ध चिंतामणि आदि संस्कृत एवं प्राकृत ग्रंथों में जहाँ-तहाँ कुछ स्फुट पद्यों में और वैयाकरणों द्वारा अपने व्याकरण ग्रंथों में उदाहरणों के रूप में दिये गये अनेक फुटकर पद्यों के रूप में हमें अपभ्रंश साहित्य उपलब्ध होता है। इसके अतिरिक्त विद्यापति की कीर्तिलता और बअब्दुल रहमान के संदेश रासक आदि काव्य ग्रंथों में अपभ्रंश साहित्य उपलब्ध हैं। संस्कृत और प्राकृत में लिखे गये अनेक शिलालेख उपलब्ध होते हैं किन्तु अपभ्रंश में लिखा हुआ कोई शिलालेख अभी तक प्रकाश में तुलसी प्रज्ञा अप्रैल-सितम्बर, 2002 0 - 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524611
Book TitleTulsi Prajna 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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