________________
पुत्र, मां-बेटी सभी के बीच वैमनस्य की दीवारें खड़ी हो रही हैं। वहां भगवान महावीर की अनेकान्तदृष्टि अत्यन्त व्यवहार्य है।
अमुक व्यक्ति जो कुछ कह रहा है वही सही नहीं है, सामने वाला व्यक्ति भी किसी अपेक्षा से सही है। यह सापेक्ष दृष्टिकोण जिस दिन मानव के भीतर उतर जाएगा, सम्यग् दर्शन आ जाएगा। निषेधात्मक भावों की विषवल्लरी स्वयमेव भस्मीभूत हो जाएगी। विधेयात्मक भावों का बगीचा खिल उठेगा। सब प्रकार का तनाव धीरे-धीरे धुलता चला जाएगा। अन्ततः परम शान्ति, परम आनन्द और परम सुख का सागर लहराने लगेगा।
जैन विश्व भारती लाडनूं (राजस्थान)
72
-
- तुलसी प्रज्ञा अंक 115
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org