SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस प्रकार से प्रकृति में हर जीव-जन्तु का अपना विशिष्ट जीव वैज्ञानिक महत्त्व है और मनुष्य जाति को स्वयं की रक्षा हेतु अन्य जीव-जन्तुओं को भी बचाना ही होगा । अहिंसा की धार्मिक भावना तथा वैज्ञानिकों की सलाह इस संबंध में एक समान है। (६) कीटनाशक और कीड़ों का महत्त्व-प्रत्येक जीव की तरह कीड़ों का भी बहुत महत्त्व होता है। दुनिया के बहुतेरे फूलों के परागण में कीड़ों का मुख्य योगदान रहता है अर्थात् पेड़-पौधों के बीज एवं फल बनाने में कीड़े महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। अनेक शोधकर्ताओं ने यह पाया है कि जिस क्षेत्र में कीटनाशकों का अधिक उपयोग होता है वहां परागण कराने वाले कीड़ों की कमी हो जाती है और फसल की उपज पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।३२ भारत में कीट पतंगों को १३१ प्रजातियां संकटापन्न स्थिति में जी रही हैं। ऐसे में कीटनाशकों के बढ़ते उपयोग और उसके होने वाले दुष्प्रभावों से वैज्ञानिक भी चिंतित हो बैठे विश्व में प्रतिवर्ष २० लाख लोग कीटनाशी विषाक्तता से ग्रसित हो जाते हैं। जिनमें से लगभग २० हजार की मृत्यु हो जाती है। यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने १२९ रसायनों को प्रतिबंधित घोषित कर रखा है। __ कीटनाशक जहर जैसे होते हैं और ये खाद्य श्रृंखला में लगातार संग्रहीत होकर बढ़ते जाते हैं। इस प्रक्रिया को जैव आबर्धन कहते हैं। उदाहरण के लिए प्रतिबंधित कीटनाशक डी.डी.टी. की मात्रा मछली में अपने परिवेश के पानी की तुलना में १० लाख गुना अधिक हो सकती है और इन मछलियों को खाने वालों को स्वाभाविक रूप से अत्यधिक जहर की मात्रा निगलनी ही पडेगी। यही प्रक्रिया अन्य मांस उत्पादक के साथ भी लागू होती है। खाद्यान्न की तुलना में खाद्यान्न खाने वाले जन्तुओं के मांस में कई गुना कीटनाशक जमा रहेगा। जो अंततः मांसाहारी के लिए मारक सिद्ध होगा। अतएव कीड़ों का बचाव कीटनाशकों का उपयोग रोकना अर्थात् अहिंसा का पालन वैज्ञानिक रूप से भी आवश्यक हो जाता है। (७) प्राकृतिक आपदायें और हिंसा-प्रकृति अपने विरुद्ध चल रहे क्रिया कलापों को एक सीमा तक ही सहन करती है और उसके बाद अपनी प्रबल प्रतिक्रिया के द्वारा चेतावनी दे ही देती है। दिल्ली विश्वविद्यालय में भौतिकी के तीन प्राध्यापकों डॉ. मदनमोहन बजाज, डॉ. इब्राहीम तथा डॉ. विजयराज सिंह ने स्पष्ट गणितीय वैज्ञानिक गवेषणाओं द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि दुनिया भर में होने वाली समस्त प्राकृतिक आपदाओं-सूखा, बाढ़, भूकम्प, चक्रवात का कारण हिंसा और हत्याएं हैं। (इ) अहिंसा उन्नति के वैज्ञानिक उपाय (१) वृक्ष खेती-अनेक वृक्षों के फल-फूलों के साथ उनके बीज भी अच्छे खाद्य हैं। उनका उत्पादन १०-१५ टन प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष होता है जबकि कृषि से औसत उत्पादन १.२५ टन प्रतिवर्ष ही है। वृक्ष खेती में किसी प्रकार के उर्वरक सिंचाई, कीटनाशक की भी आवश्यकता नहीं होती।३६ 44 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 115 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524610
Book TitleTulsi Prajna 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy