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________________ अहिंसा की वैज्ञानिक आवश्यकता और उन्नति के उपाय - अजित जैन 'जलज' महावीर, अहिंसा और जैनधर्म तीनों एक-दूसरे से इतने अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं कि किसी एक के बिना अन्य की कल्पना करना भी मुश्किल लगता है। अतः महावीर स्वामी के २६००वें जन्मोत्सव पर जैनधर्म की उन्नति हेतु अहिंसा की वैज्ञानिकता सिद्ध करनी सर्वाधिक सामयिक प्रतीत होती है। स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गांधी जैसे महामनीषी भी धर्म और विज्ञान के प्रबल पक्षधर रहे हैं। जैनधर्म में अहिंसा का विशद विवेचन किया गया है तथा वर्तमान विज्ञान के आलोक में एक ओर जहां अहिंसक आहार से अपराध, खाद्य समस्या, जल समस्या और रोगों का निदान दिखायी देता है वहीं दूसरी ओर अहिंसा के द्वारा जैव विविधता संरक्षण एवं कीड़ों का महत्त्व भी दृष्टिगोचर होता है। ___ इस प्रकार अहिंसा की जीव वैज्ञानिक आवश्यकता का अनुभव होने पर अहिंसा हेतु विभिन्न वैज्ञानिक उपाय, वृक्ष खेती, ऋषि-कृषि, समुद्री खेती, मशरूम खेती, जन्तु विच्छेदन विकल्प, अहिंसक उत्पाद विक्रय केन्द्र, इत्यादि हमारे सामने आते हैं। यह सब देखने पर भारत के कतिपय वैज्ञानिकों के इस विचार की पुष्टि होती है कि आधुनिक विज्ञान का आधार बनाने में प्राचीन भारत का अमूल्य योगदान रहा है। इसके साथ प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक स्व. श्री यशपाल जैन का अपने जीवन भर के अनुभवों का निचोड़ भी औचित्य भरा लगता है-'वर्तमान युग की सबसे बड़ी आवश्यकता विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय की है।' (अ) अहिंसा का जैनधर्म में महत्त्व जैन धर्म में जीवों का विस्तृत वर्गीकरण कर प्रत्येक जीव की सुरक्षा हेतु दिशानिर्देश मिलते हैं । जैन शास्त्रों में मांस के स्पर्श से भी हिंसा बतायी गयी है। त्रस हिंसा तुलसी प्रज्ञा जनवरी-मार्च, 2002 - - 41 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524610
Book TitleTulsi Prajna 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain, Jagatram Bhattacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size6 MB
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