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4. परदोष दर्शन :
यूनान के महान् दार्शनिक सुकरात से पूछा गया - दुनियां में सबसे सरल काम क्या है? उत्तर मिला बिना मांगे दूसरों को सलाह देना और दूसरों को सुधारने का प्रयत्न करना। अगला प्रश्न था सबसे कठिन काम क्या है? सुकरात ने कहा -- सबसे कठिन है स्वयं को देखना और बदलना।
__सचमुच ! दूरदर्शन के युग में स्व दर्शन बहुत कठिन है | परदोष दर्शन व्यक्ति की मानसिक दुर्बलता है, जो कि अशांतसहवास का बहुत बड़ा कारण है। आज व्यक्ति का ध्यान दूसरों की गलतियों पर ही अधिक केन्द्रित रहता है। स्वयं के घर में क्या हो रहा है, इसकी उसे चिन्ता नहीं, किन्तु पड़ौसी के घर की चिन्ता उसे हर पल लगी रहती है। निरन्तर परदोष दर्शन में उलझा हुआ व्यक्ति किसी का भी विश्वास नहीं करता। वह हर व्यक्ति की प्रत्येक प्रवृत्ति को संदेह की आंखों से देखता है। यहीं से प्रारम्भ होता है एक अंतहीन सिलसिला दोषारोपण का तथा शिकायत की वृत्ति का । इन सबका एकमात्र कारण है व्यक्ति का नकारात्मक दृष्टिकोण | उसे किसी भी व्यक्ति में या उसके कार्य में अच्छाई नजर आती ही नहीं। ऐसी स्थिति में बार-बार टोका-टोकी करने की आदत सामूहिक जीवन में अशांतसहवास का कारण बनती है।
जबकि अनेकांत के अनुसार हर वस्तु का पक्ष होता है तो प्रतिपक्ष भी होता है। यत् सत् तत् सत्-प्रतिपक्षम् । दो विरोधी युगल एक साथ रह सकते हैं, एक साथ मिलकर कार्य कर सकते हैं, जैसे आग और पानी, प्रकाश और अंधकार, उष्णता और ठंडक, अच्छाई और बुराई। जहां बुराई है वहां अच्छाई भी अवश्य होगी । अपेक्षा है कि हम सम्यग् दृष्टिकोण को अपनाकर अपने नजरिये को बदलें । सापेक्षता के आधार पर हम दुर्गुणों के साथ-साथ सद्गुणों पर भी नजर डालें तो अवश्य ही जीवन में शांतसहवास की सौरभ महकेगी।
अनेकांत एक विराट दर्शन है जिसका उपयोग केवल तात्त्विक या सैद्धान्तिक दृष्टि से ही नहीं, अपितु व्यावहारिक जीवन में शांतसहवास की दृष्टि से भी इसकी सर्वत्र उपादेयता है। समस्याओं की भीड़ में समाधान तभी खोजा जा सकता है जब हम अनेकांत के दर्शन को अपने जीवन व्यवहार में उतारें।
सन्दर्भ : 1. तत्त्वार्थ सूत्र 5/21 2.पंचसूत्रम् 5/16 3. जैन धर्म जीवन और जगत पृ. - 106 4. पंचसूत्रम् 5/49 5. विचारों को बदलना सीखें पृ. 154-155
6. सत्य का पंछी विचारों का पिंजरा पृ. 175 7. आमंत्रण आरोग्य को पृ. 37. 8. जोत जले बिन बाती पृ. 47
सम्पर्क सूत्र : जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं
तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 2001
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