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होते चले जाएंगे। समस्या का मूल कारण व्यक्ति का आग्रही होना है। यदि व्यक्ति आग्रह को छोड़कर उदारता से सामने वाले की बात को सुने, समझे तो समस्या ही नहीं रहेगी। जितनी भी समस्याएं देखने को मिलती हैं उन सबके मूल में आग्रह ही है।
वर्तमान आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दों में ''आग्रही मनुष्य आंख पर आग्रह का उपनेत्र चढ़ाकर सत्य को देखता है और अनाग्रही मनुष्य अनन्त चक्षु होकर सत्य को देखता है।'' यदि व्यक्ति में यह अनेकान्त दृष्टि आ जाए तो उसके जीवन में समस्या को कोई स्थान नहीं रहता तथा पारिवारिक दृष्टि से अहम का विगलन और प्रेम के उदय से सब वस्तुएं सीधी नजर आने लगती है।
परिवार में प्रत्येक सदस्य अपने हितों और भावनाओं को गौण कर दूसरे के हितों और भावनाओं को प्राथमिकता दें तो स्वयं का हित विघटित नहीं होता है अपितु वह अधिक सधता है और पारिवारिक जीवन सुखमय होता है।
यही दृष्टिकोण दूसरे के घर से आने वाली और अपने घर की बहु के प्रति उसके दृष्टिकोण को महत्व देकर उसकी कठिनाई को समझकर सामञ्जस्य बिठाने की प्रवृत्ति बन जाये तो हमारा अर्थ के प्रति मोह घटेगा, उसके प्रति और उसके पितृपक्ष के प्रति सहज स्नेह आदर विकसित होगा तो फिर हम इतने नृशंस और क्रूर नहीं हो पायेंगे। जैसा कि समाचार पत्रों में दिखाई देने वाली विद्रूपता के लिये कोई स्थान भी नहीं होगा। बह भी यदि अपनी सुख सुविधाओं को गौण मानकर परिवार के बड़े बूढ़े व्यक्तियों को सम्मान देते हए व्यवहार करें तो घर में सुखमय वातावरण बनेगा तथा गृहकलह का वातावरण नहीं होगा तो शांति रहेगी।
___ इसी तरह व्यक्ति अपनी वासनाओं को अधिक महत्व देने के स्थान पर सामने वाले व्यक्ति की इच्छा-अनिच्छा को महत्त्व दें तो उसकी इच्छा दमित हो जायेगी और बलात्कार के भीषण दृश्य दिखाई देंगे। दूसरे के दृष्टिकोण को सत्कार देते हुये यदि सामने वाले की मजबूरी को महत्त्व देकर अपनी इच्छा को गौण करे तो स्त्री पुरुष की समानता का दृष्टिकोण भी विकसित होगा। वासना और क्रोध पर नियन्त्रण होने से बढ़ते रोगों और परस्पर बढ़ते हिंसक वातावरण पर रोक लगेगी।
राजनीतिक दृष्टि से अपने दल या अपनी विचारधारा को महत्व देते हए भी विरोधी राजनैतिक विचारधारा में भी सत्य हो सकता है। यदि यह विश्वास उत्पन्न हो जाता है तो फिर विरोधियों को विरोध से काटने की प्रवृत्ति समाप्त होगी। हम अपनी बात तो दृढ़ता पूर्वक रखेंगे ही किन्तु दूसरे की विचारधारा को घृणा की दृष्टि से नहीं देखेंगे तो पारस्परिक राजनीतिक प्रतिद्वन्द्विता में घृणा की भावना कम होगी। व्यक्ति यह भी सोच सकता है कि अमुक दल ने अपनी विचारधारानुसार शासन कर लिया, दूसरा दल यदि आता है, संभव है उसकी विचारधारा में भी कोई अच्छी बात हो तो मन की दूरी कम होगी और राजनैतिक अपराधों में कमी आयेगी।
- तुलसी प्रज्ञा अंक 113-114
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