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आज कठिनाई यह है कि धार्मिकों की संख्या बहत बड़ी है, अरबों की संख्या है। पर, मैं तो उन्हें धार्मिक नहीं, मात्र अनुयायी कहंगा। बहत बड़ी संख्या में धार्मिक नहीं, मात्र अनुयायी हैं। फिर भी एक मतिभ्रम पैदा किया जा रहा है। जातिवाद का खेल खेला जा रहा है। जातिवाद के आधार पर भयंकर हिंसा हो रही है। साम्प्रदायिक उन्माद, साम्प्रदायिक कट्टरता के आधार पर हिंसा का तांडव हो रहा है। हर आदमी अपने सम्प्रदाय को अच्छा समझ रहा है व उसी में सबको दीक्षित करना चाहता है। अपनी आस्था किसी सम्प्रदाय में रहे, ठीक है पर उसके आधार पर दूसरे को हीन समझा जाए, येन-केन-प्रकारेण उसी में सबको दीक्षित करना चाहता है। अपनी आस्था किसी सम्प्रदाय में रहे, ठीक है, पर उसके आधार पर दूसरे को हीन समझा जाए, येन-केन-प्रकारेण उसी में सबको दीक्षित करने का प्रयास किया जाए, यह हिंसा का कारण बन रहा है। कुछ लोक येन-केन-प्रकारेण, जैसे-तैसे गलत तरीकों से अर्थ का अर्जन करते हैं, धन-कुबेर बनना चाहते हैं। क्रूर व्यवहार, शोषण के आधार पर किये जाने वाले अर्थ का अर्जन हिंसा का बड़ा कारण है।
हिंसा की मानसिकता वाले इस युग में अहिंसा की अनिवार्यता व महत्ता है। इसीलिए अहिंसा-यात्रा चल रही है। अहिंसा का उद्देश्य केवल मत मारो' तक ही सीमित नहीं है। हम खोज कर रहे है हिंसा के कारणों का। हिंसा के प्रमुख कारणों की खोज करने पर लगाअभाव बहुत बड़ा कारण है हिंसा का । व्यक्ति को जब तक खाने को नहीं मिलता, प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती, तो व्यक्ति अनायास ही हिंसा की दिशा में प्रेरित हो जाता है, हिंसा करता है। आतंकवाद के पीछे इस समस्या को देखा जा सकता है। जातिवाद व साम्प्रदायिक कट्टरता भी हिंसा के बहुत बड़े कारण हैं। हिंसा का सबसे बड़ा कारण है - व्यक्ति की आध्यात्मिक चेतना जागृत नहीं है। इसीलिए वह अपने संवेगों पर नियंत्रण नहीं कर पा रहा है। जब व्यक्ति का स्वयं अपने संवेगों पर नियंत्रण नहीं होता तो कोई भी आदमी, कभी भी आवेशों को उत्तेजना दे सकता है। उसे हिंसा में झोंक सकता है।
अहिंसा चेतना के जागरण के लिए ऐसा कुछ सोचें कि व्यक्ति में अपने आप पर नियंत्रण की अभिरुचि जागे। समय पर वह अपने संवेगों पर नियंत्रण कर सके। अपने आवेश पर अपना नियंत्रण और आन्तरिक प्रकाश, समस्या से समाधान पाने के लिए ये दो उपाय आवश्यक है। इनके अभाव में क्या स्थिति घटित हो सकती है, इसे रूपक की भाषा में समझा जा सकता है- कार सही ढंग से नहीं चल रही थी। चौराहे पर पुलिस ने कार को रोकने का संकेत किया। उसने ध्यान दिलाया कि कार बिना लाइट किए कैसे चला रहे हो, रात का समय है ? ड्राइवर ने कहा - तुम भी रास्ते से हट जाओ। कार का ब्रेक भी नहीं है। कल्पना करें, जिस कार में लाइट भी नहीं, ब्रेक भी नहीं, वो कितनी खतरनाक हो सकती है। नया वर्ष, आने वाला नया दिन कम खतरनाक हो, इसके लिए अपेक्षा है भीतर का आलोक जागे। अन्तश्चक्षु उद्घाटित हो। अपने संवेगों पर अपना नियंत्रण स्थापित हो। जहां अन्तर का तुलसी प्रज्ञा जुलाई-दिसम्बर, 20016
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